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Tuesday, February 28, 2012

१८४९ में भारत में प्रचलित १ रुपये के सिक्के का छाया चित्र


रहीम के दोहे भाग-दो

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय॥1
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥2
मीठा सब से बोलिए, फैले सुख चहुँ ओरे!
वाशिकर्ण है मंत्र येही, ताज दे वचन कठोर॥3
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय4
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं5
जिन ढूँढा तिन पाइयॉं, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ6
सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप7
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौली के, तब मुख बाहर आनि8
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप9
काल्‍ह करै सो आज कर, आज करै सो अब्‍ब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब्‍ब9
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय10
दोस पराए देखि  करि, चला हसंत हसंत।
अपने या न आवई, जिनका आदि न अंत11
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्‍यान।
मोल करो तलवार के, पड़ा रहन दो म्‍यान12
सोना, सज्‍जन, साधुजन, टूटि जुरै सौ बार।
दुर्जन कुंभ-कुम्‍हार के, एकै धका दरार13
पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़।
ताते या चाकी भली, पीस खाए संसार14
कॉंकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय।
ता चढ़ मुल्‍ला बॉंग दे, बहिरा हुआ खुदाए15
१९१० में भारत में प्रचलित १ रुपये के सिक्के का चित्र


१८७२ में भारत में प्रचलित एक रुपये के सिक्के का चित्र


१८६२  में भारत में प्रचलित एक रुपये  के  सिक्के का चित्र


Thursday, February 16, 2012

दूध में मिलावट का पता लगाने के आसान तरीके


स्वास्थ्य के लिए सबसे पहले सलाह दी जाती है, वो होती है “दूध” सेवन की।   इसे सर्वोत्तम माना गया है। दूध अपने आप में सम्पूर्ण आहार है।

पर  शहरी क्षेत्रों में  शुद्ध दूध मिलना बहुत  मुश्किल  है। और मिलावटी दूध  स्वाथ्य के लिए नुकसान देय होता है।

मै आज दूध मै मिलावट का पता लगाने का एक घरेलु तरीका यहाँ पर दे रहा हूँ, जो इस प्रकार है:


दूध में सामान्यतः पानी, सप्रेटा, स्टार्च की मिलावट हो सकती है।  दूध की शुद्धता लैक्टोमीटर(Lactometer) से मापी जाती है।  इसकी रीडिंग 28 से 32 होनी चाहिए।   अगर ये रीडिंग 28 से नीचे आती है तो दूध मै पानी की मिलावट शर्तियाँ है।

TESTING-MILK

आजकल, लेकिन मिलावट-कर्ता लाक्टोमीटर की रीडिंग बढाने के लिए यूरिया, चीनी,स्टार्च आदि  पदार्थों को  भी दूध मै मिला  रहे हैं, यहाँ तक की Ezee Shampoo,  रिफाईंड आयल, डिटर्जेट, सोडा आदि मिला रहे हैं।

दूध मै  मिलावट का पता लगाने के अन्य  तरीके इस प्रकार है :
  • अगर दूध स्टार्च मिश्रित है, तो उसे आयोडीन मिलाकर गरम करने से दूध का रंग नीला हो जाएगा।

  • दूध में बराबर मात्रा में एल्कोहल मिलाने से घटिया किस्म का दूध फट जाता है।

  • पॉलिश की गई किसी खड़ी सतह पर दूध की एक बूंद गिराएं, गिरने की रफ्तार धीमी हो और पीछे सफेद निशान छोड़े तो साफ है कि मिलावट नहीं है।

  • दूध में पानी की मिलावट की जांच के लिए चिकनी सतह पर दूध की बूंद गिराएं। अगर पानी मिला है तो वह बिना कोई निशान छोड़े तेजी से आगे बह जाएगा। शुद्ध दूध धीरे-धीरे बहेगा और सफेद धब्बा रह जाएगा।

शिवरात्रि व्रत कथा

एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’
उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई:
‘एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब का पालन करता  था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।
अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे  शिकारी  ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे शिकारी ! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।’
शिकारी हँसा और बोला, ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’
उत्तर में मृगी ने फिर कहा, ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे शिकारी ! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।’
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य  करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,’ हे शिकारी  भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।’
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।’
उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।
देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।’

Sunday, February 5, 2012

लाल बहादुर शास्त्री


            
‘एक लडका काशी के ‘हरिश्चंद्र हाइस्कूल’ में पढता था । उसका गांव काशी से ८ मील दूर था । वो वहां से प्रतिदिन पैदल पाठशाला जाता । रास्ते में गंगा नदी पार करनी पडती थी । उस समय गंगा पार करवानेके लिए नाववाला दो पैसे लेता था । दो पैसे जाने के और दो वापस आने के, यानी एक आना; इस हिसाब से प्रतिमाह लगभग दो रुपये । उस समय सोने का मूल्य सौ रुपये प्रति तोले से भी कम  था, इसलिए यह राशी भी बहुत अधिक लगती थी ।

माता-पिता पर पैसों का दबाव न आए, ऐसा सोचकर उस बालक ने तैरना सीख लिया । गर्मी, बरसात अथवा ठंडी हो, किसी भी ऋतु में वह गंगा तैरकर पार करता था । बहुत दिन बीत गए । एक दिन पौष माह की हाथ-पांव गला देने वाली ठंडी में वह सुबह पाठशाला जाने हेतु पानी में उतरा । तैरते हुए नदी के मध्यभाग में पहुंचा । एक नाव में सवार होकर कुछ यात्री नदी पार कर रहे थे । उन्हें लगा कि एक छोटा लडका नदी में डूब रहा है, इसलिए उन्होंने नाव उसके समीप ली और उसे नाव में खींच लिया । उस लडके के मुखपर तिल मात्र भी डर अथवा चिंता नहीं थी । उसका असामान्य साहस देखकर सब लोग आश्चर्यचकित हो गए ! 

लोग : अभी तुम डूबकर मर जाते तो ? ऐसा साहस करना योग्य नहीं !
 
लडका : साहस एक गुण है । साहसी होना ही चाहिए । जीवन में विघ्न-संकट आएंगे, उनका सामना करने के लिए और उन पर विजय प्राप्त करने के लिए साहस आवश्यक है । अभी से साहसी नहीं बनूंगा, तो जीवन में बडे-बडे काम कैसे कर  पाऊंगा ?
 
लोग : ऐसे समय पर तैरने क्यों आए हो ? दोपहर में क्यों नहीं आते ?
 
लडका : मैं तैरने के लिए नदी में नहीं आया हूं । मैं तो पाठशाला जा रहा हूं ।
 
लोग : नाव में बैठकर जाओ !
 
लडका : प्रतिदिन चार पैसे लागते है । मुझे मेरे गरीब माता-पिता पर बोझ नहीं बनना है । मुझे अपने पैरों पर खडा होना है । यदि मेरा खर्च बढ गया, तो माता-पिता की चिंता बढेगी । उन्हें घर चलाने में कठिनाई होगी ।

लोग उसकी ओर आदर से देखते ही रह गए । वही लडका आगे जाकर भारत का प्रधानमंत्री बना । कौन था वह बालक ? वे थे लाल बहादुर शास्त्री । इतने बडे पद पर होते हुए भी उनमें सच्चाई, निर्मलता, प्रमाणिकता, साहस, साधापन, देशप्रेम इत्यादि गुण थे । वे सदाचार के जीवित उदाहरण थे । ऐसे महापुरुष अल्प काल राज्य करने पर भी जनतापर अपना प्रभाव छोड जाते हैं ।’