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Thursday, December 22, 2011

चारा काटने की मशीन



                  रेल की लाइनों के पार, इस्लामाबाद की नई आबादी के मुसलमान जब सामान का मोह छोड ,जान का मोह लेकर भागने लगे तो हमारे पड़ोसी लहनासिंह की पत्नी चेती।
''तुम हाथ पर हाथ धरे नामर्दों की भाँति बैठे रहोगे,'' सरदारनी ने कहा, ''और लोग एक से एक बढ़िया घर पर कब्जा कर लेंगे।''
सरदार लहनासिंह और चाहे जो सुन लें, परन्तु औरत जात के मुँह से 'नामर्द' सुनना उन्हें कभी गवारा न था। इसलिए उन्होंने अपनी ढीली पगड़ी को उतारकर फिर से जूड़े पर लपेटा; धरती पर लटकती हुई तहमद का किनारा कमर में खोंसा; कृपाण को म्यान से निकालकर उसकी धार का निरीक्षण करके उसे फिर म्यान में रखा और फिर इस्लामाबाद के किसी बढ़िया 'नए' मकान पर अधिकार जमाने के विचार से चल पड़े।
वे अहाते ही में थे कि सरदारनी ने दौड़कर एक बड़ा-सा ताला उनके हाथ में दे दिया। ''मकान मिल गया तो उस पर अपना कब्जा कैसे जमाओगे?''
सरदार लहनासिंह ने एक हाथ में ताला लिया, दूसरा कृपाण पर रखा और लाइनें पार कर इस्लामाबाद की ओर बढ़े।

                           खालसा कालेज रोड, अमृतसर पर, पुतली घर के समीप ही हमारी कोठी थी। उसके बराबर एक खुला अहाता था। वहीं सरदार लहनासिंह चारा काटने की मशीनें बेचते थे। अहाते के कोने में दो-तीन अँधेरी-सीली कोठरियाँ थीं।
मकान की किल्लत के कारण सरदार साहब वहीं रहते थे। यद्यपि काम उन्होंने डेढ़-दो हजार रुपये से आरम्भ किया था, पर लड़ाई के दिनों में (किसानों के पास रुपये का बाहुल्य होने से) उनका काम खूब चमका। रुपया आया तो सामान भी आया और सुख-सुविधा की आकांक्षा भी जगी। यद्यपि प्रारम्भ में उस अहाते और उन कोठरियों को पाकर पति-पत्नी बड़े प्रसन्न हुए थे, परन्तु अब उनकी पत्नी, जो 'सरदारनी' कहलाने लगी थी, उन कोठरियों तथा उनकी सील और अँधेरे को अतीव उपेक्षा से देखने लगी थी। ग्राहकों को मशीनों की फुर्ती दिखाने के लिए दिन-भर उसमें चारा कटता रहता था। अहाते-भर में मशीनों की कतारें लगी थीं जो भावना-रहित हो अपने तीखे छूरों से चारे के पूले काटती रहती थीं। सरदारनी के कानों में उनकी कर्कश ध्वनि हथौड़ों की अनवरत चोटों-सी लगती थीं। जहाँ-तहाँ पड़े हुए चरी के पूले और चारे के ढेर अब उसकी आँखों को अखरने लगे। सरदार लहनासिंह तो यद्यपि उनकी पगड़ी और तहमद रेशमी हो गयी थी और उनके गले में लकीरदार गबरुन की कमींज का स्थान घुटनों तक लम्बी बोस्की की कमीज ने ले लिया था वही पुराने लहनासिंह थे। उन्हें न कोठरियों की तंगी अखरती थी, न तारीकी, न मशीनों की कर्कशता, न चारे के ढेरों की निरीहता, बल्कि वे तो इस सारे वातावरण में बड़े मस्त रहते थे। वे उन सरदारों में से हैं जिनके सम्बन्ध में एक सिख लेखक ने लिखा है कि जिधर से पलटकर देख लो, सिख दिखाई देंगे।

कुछ पतले-दुबले हों, यह बात नहीं। अच्छे-खासे हृष्ट-पुष्ट आदमी थे और उनकी मर्दुमी के परिणामस्वरूप पाँच बच्चे जोंकों की तरह सरदारनी से चिपटे रहते थे। परन्तु यह सरदारनी का ढंग था। उसे यदि सरदार लहनासिंह से कोई काम कराना होता, जिसमें कुछ बुद्धि की आवश्यकता हो तो वह उन्हें 'बुद्धू' कहकर उकसाती और यदि ऐसा काम कराना होता, जिसमें कुछ बहादुरी की जरूरत हो तो उन्हें नामर्द का ताना देती। उसका ढंग था तो खासा अशिष्ट पर रुपया आने और अच्छे कपड़े पहनने ही से तो अशिष्ट आदमी शिष्ट नहीं हो जाता। फिर सरदारनी को नए धन का भान चाहे हो, शिष्टता का भान कभी न था।

सरदार लहनासिंह इस्लामाबाद पहुँचे तो वहाँ मार-धाड़ मची हुई थी। उनकी चारा काटने की मशीनें जिस प्रकार भावना-रहित होकर चरी के निरीह पूले काटती थीं, कुछ उसी प्रकार उन दिनों एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के अनुयायियों को काट रहे थे। सरदार लहनासिंह ने अपनी चमचमाती हुई कृपाण निकाली कि यदि किसी मुसलमान से मुठभेड़ हो जाए तो तत्काल उसे अपनी मर्दुमी का प्रमाण दे दें। परन्तु इस ओर जीवित मुसलमान का निशान तक न था। हाँ, गलियों में रक्तपात के चिह्न अवश्य थे। और दूर लूट-मार की आवाजें भी आ रही थीं।
तभी, जब वे सतर्कता से बढ़े जा रहे थे, उनको अपने मित्र गुरदयाल सिंह मकान का ताला तोड़ते दिखाई दिये।

सरदार लहनासिंह ने रुककर प्रश्नसूचक दृष्टि से उनकी ओर देखा।
''मैं तो इस मकान पर कब्जा कर रहा हूँ।'' सरदार गुरदयालसिंह ने एक उचटती हुई दृष्टि अपने मित्र पर डाली और निरन्तर अपने काम में लगे रहे।
तब सरदार लहनासिंह ने ढीली होती हुई पगड़ी का सिरा निकालकर पेच कसा और अपने मित्र के नए मकान की ओर देखा। उसे देखकर उन्हें अपने लिए मकान देखने की याद आयी और वे तत्काल बढ़े। दो-एक मकान छोड़कर उन्हें सरदार गुरदयालसिंह की अपेक्षा कहीं बड़ा और सुन्दर मकान दिखाई दिया, जिस पर ताला लगा था। आव देखा न ताव, उन्होंने गली में से एक बड़ी-सी ईंट उठायी और दो-चार चोटों ही में ताला तोड़ डाला।


वह मकान यद्यपि बहुत बड़ा न था, परन्तु उनकी उन कोठरियों की तुलना में तो स्वर्ग से कम न था, कदाचित् किसी शौकीन क्लर्क का मकान था, क्योंकि एक छोटा-सा रेडियो भी वहाँ था और ग्रामोफोन भी। गहने-कपड़े न थे और ट्रंक खुले पड़े थे। मकान वाला शायद मार-धाड़ से पहले शरणार्थी कैम्प या पाकिस्तान भाग गया था। जो सामान वह आसानी से साथ ले जा सकता था, ले गया था। फिर भी जरूरत का काफी सामान घर में पड़ा था। यह सब देखकर सरदार लहनासिंह ने उल्टी कलाई मुँह पर रखी और जोर से बकरा बुलाया। फिर तहमद की कोर को दोनों ओर से कमर में खोंसा और सामान का निरीक्षण करने लगे।

जितनी काम की चीजें थीं, वे सब चुनकर उन्होंने एक ओर रखीं, अनावश्यक उठाकर बाहर फेंकी, वही बड़ा ताला, जो वे घर से लाये थे, मकान में लगाया, गुरदयालसिंह को बुलाकर समझाया कि उनके मकान का खयाल रखें और स्वयं अपना सामान लाने चले कि मकान पूर्ण रूप से उनका हो जाए।

जब वे अपने घर पहुँचे तो उन्हें खयाल आया कि सामान ले जाएँगे कैसे?  इस भगदड़ में तांगा-इक्का कहाँ?  तब अहाते से साइकिल लेकर वे अपने पुराने मित्र रामधन ग्वाले के यहाँ पहुँचे जिसकी बैलगाड़ी पर (ट्रकों पर लाने-ले आने से पहले) वे अपनी चारा काटने की मशीनें लादा करते थे। मिन्नत-समाजत कर, दोहरी मंजदूरी का लालच देने के बाद वे उसे ले आये।

जब सारा सामान गाड़ी में लद गया और वे चलने को तैयार हुए तो सरदारनी ने साथ चलने का अनुरोध किया। तब उन्होंने उस नेकबख्त को समझाया कि वहाँ के दूसरे सरदार अपनी सिंहनियों को बुला लेंगे तो वे भी ले जाएँगे। वे लाख सिंहनियाँ सहीसरदार लहनासिंह ने अपनी पत्नी को समझाया पर हैं तो औरतें ही और दंगे-फिसाद में औरतों ही को अधिक सहना पड़ा है। फिर उन्होंने समझाया कि अहाते का भी तो खयाल रखना चाहिए। शरणार्थी धड़ाधड़ आ रहे हैं, कौन जाने यहाँ घर खुला देखकर जम जाए।

सरदारनी मान गयी, परन्तु जब सरदार लहनासिंह चलने लगे तो उसने सुझाया कि वे सामान के साथ चारा काटने की एक मशीन ले जाकर अवश्य अपने नए घर में स्थापित कर दें, ताकि उनकी मिलकियत में किसी प्रकार का सन्देह न रहे और सभी को पता चल जाए कि यह मकान चारा काटने की मशीनों वाले सरदार लहनासिंह का है।

सरदारनी का यह प्रस्ताव सरदार जी को बहुत अच्छा लगा।
यद्यपि बैलगाड़ी में और स्थान न था, परन्तु सामान पर सबसे ऊपर चारा काटने की एक मशीन किसी-न-किसी प्रकार रखी गयी। गिर न जाए, इसलिए रस्सों से उसे कसकर बाँधा गया और सरदार लहनासिंह अपने नए घर पहुँचे। गली ही में उन्होंने देखा कि सरदार गुरदयालसिंह की सिंहनी और बच्चे तो नए मकान में पहुँच भी गये हैं। तब उन्हें लगा कि उनसे भारी गलती हो गयी है। उन्हें भी अपनी सिंहनी को तत्काल ले आना चाहिए। यदि पतला-दुबला गुरदयाल अपनी सिंहनी को ला सकता है तो वे क्यों नहीं ला सकते।
यह सोचना था कि सारे सामान को उसी प्रकार डयोढ़ी में रख वही बड़ा-सा ताला लगा, उन्होंने गुरदयालसिंह से कहा कि भाई जरा खयाल रखना, मैं भी अपनी सिंहनी को ले आऊँ, संगत हो जाएगी।
और उसी बैलगाड़ी पर सरदार लहनासिंह उल्टे पाँव लौटे। घर पहुँचकर उन्होंने अपनी सरदारनी को बच्चों के साथ तत्काल तैयार होने के लिए कहा।

परन्तु एक-डेढ़ घंटे के बाद जब अपने बीवी-बच्चों सहित सरदार लहनासिंह इस्लामाबाद पहुँचे तो उनके नए मकान का ताला टूटा पड़ा था। डयोढ़ी से उनका सारा सामान गायब था। केवल चारा काटने की मशीन अपने पहरे पर मुस्तैदी से जमी हुई थी। घबराकर उन्होंने गुरदयालसिंह को आवाज दी, परन्तु उनके मकान में कोई और सरदार विराजमान थे। उनसे पता चला कि गुरदयालसिंह दूसरी गली के एक और अच्छे मकान में चले गये हैं। तब सरदार लहनासिंह कृपाण निकालकर अपने मकान की ओर बढ़े कि देखें चोर और क्या-क्या ले गये हैं।
डयोढ़ी में उनके प्रवेश करते ही दो लम्बे-तड़ंगे सिखों ने उनका रास्ता रोक लिया, बैलगाड़ी पर सवार उनके बीवी-बच्चों की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा कि यह मकान शरणार्थियों के लिए नहीं। इसमें थानेदार बलवन्तसिंह रहते हैं। थानेदार का नाम सुनकर लहनासिंह की कृपाण म्यान में चली गयी और पगड़ी कुछ और ढीली हो गयी।

''हुजूर, इस मकान पर तो मेरा ताला पड़ा था। मेरा सारा सामान...।''
''चलो-चलो बाहर निकलो। अदालत में जाकर दावा करो। दूसरे के सामान को अपना बताते हो।''
और उन्होंने सरदार लहनासिंह को डयोढ़ी से ढकेल दिया। तभी लहनासिंह की दृष्टि चारा काटने की मशीन पर गयी और उन्होंने कहा :
''देखिए, यह मेरी चारा काटने की मशीन है, किसी से पूछ लीजिए, मुझे यहाँ सभी जानते हैं।''
परन्तु शोर सुनकर अपने 'नए' मकानों से जो सरदार या लाला बाहर निकले उनमें एक भी परिचित आकृति लहनासिंह को न दिखाई दी।

''यों क्यों नहीं कहते कि चारा काटने की मशीन चाहिए,'' उन्हें धकेलने वाले एक सिख ने कहा और वह अपने साथी से बोला, ''सुट्ट ओ करतारसिंहा, मशीन नूं बाहर। गरीब शरणार्थी हण। असां इह मशीन साली की करनी ए।''
और दोनों ने मशीन बाहर फेंक दी।
दो-ढाई घंटे के असफल वाबेले के बाद जब सरदार लहनासिंह, रात आ गयी जानकर, वापस अपने अहाते को चले तो उनके बीवी-बच्चे पैदल जा रहे थे और बैलगाड़ी पर केवल चारा काटने की मशीन लदी हुई थी।



                                                                                       ---- लेखक :   उपेंद्रनाथ अश्क
 

Wednesday, December 21, 2011

आग की भीख


धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा
कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसा


कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है
मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है


दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे


प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ
चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ


बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है


मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा?


आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा
भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा


तमवेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ
ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ


आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है
बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है


अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ डेर हो रहा है
है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है


निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है
निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है


पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ
जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ


मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है
अरमान आरजू की लाशें निकल रही हैं


भीगी खुशी पलों में रातें गुज़ारते हैं
सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं


इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे
पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे


उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ
विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ


आँसू भरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे
मेरे शमशान में आ श्रंगी जरा बजा दे


फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे
हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे


आमर्ष को जगाने वाली शिखा नई दे
अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे


विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ
बेचैन जिन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ


ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे
जो राह हो हमारी उसपर दिया जला दे


गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे
इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे


हम दे चुके लहु हैं, तू देवता विभा दे
अपने अनलविशिख से आकाश जगमगा दे


प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ
तेरी दया विपद् में भगवान माँगता हूँ





                                ----रचयिता : रामधारी सिंह दिनकर 

Tuesday, December 20, 2011

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी की प्रशिद्ध कहानी


उसने कहा था 

 
बडे-बडे शहरों के इक्के-गाडिवालों की जवान के कोड़ों  से जिनकी पीठ छिल गई  है, और कान पक गये हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बोली का मरहम लगायें।  जब बडे-बडे शहरों की चौडी सडक़ों पर घोडे क़ी पीठ चाबुक से धुनते हुए, इक्केवाले कभी घोडे क़ी नानी से अपना निकट-सम्बन्ध स्थिर करते हैं, कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने पर तरस खाते हैं,कभी उनके पैरों की अंगुलियों के पोरे  को चींघकर अपने-ही को सताया हुआ बताते हैं, और संसार-भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ के अवतार बने, नाक की सीध चले जाते हैं, तब अमृतसर में उनकी बिरादरी वाले तंग चक्करदार गलियों में, हर-एक लङ्ढी वाले के लिए ठहर कर सब्र का समुद्र उमडा कर बचो खालसाजी।  हटो भाईजी। ठहरना भाई जी।  आने दो लाला जी।  हटो बाछा। -- कहते हुए सफेद फेटोंखच्चरों और बत्तकोंगन्नें और खोमचे और भारेवालों के जंगल में से राह खेते हैं।   क्या मजाल है कि जी और 'साहब बिना सुने किसी को हटना पडे।  यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती नहींपर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई।  यदि कोई बुढिया बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटतीतो उनकी बचनावली के ये नमूने हैं -- हट जा जीणे जोगिएहट जा करमा वालिएहट जा पुतां प्यारिएबच जा लम्बी वालिए।  समष्टि में इनके अर्थ हैंकि तू जीने योग्य हैतू भाग्योंवाली हैपुत्रों को प्यारी हैलम्बी उमर तेरे सामने हैतू क्यों मेरे पहिये के नीचे आना चाहती है?बच जा।
से बम्बूकार्टवालों के बीच में होकर एक लडक़ा और एक लडक़ी चौक की एक दूकान पर आ मिले।
उसके बालों और इसके ढीले सुथने से जान पडता था कि दोनों सिक्ख हैं। वह अपने मामा के केश धोने के लिए दही लेने आया थाऔर यह रसोई के लिए बडियाँ। दुकानदार एक परदेसी से गूंथ  रहा थाजो सेर-भर गीले पापड़ों  की गड्डी को गिने बिना हटता न था।
''तेरे घर कहाँ है?''
''मगरे मेंऔर तेरे?''
'' माँझे मेंयहाँ कहाँ रहती है?''
''अतरसिंह की बैठक मेंवे मेरे मामा होते हैं।''
''मैं भी मामा के यहाँ आया हूँ  उनका घर गुरूबाजार में हैं।''
इतने में दुकानदार निबटाऔर इनका सौदा देने लगा। सौदा लेकर दोनों साथ-साथ चले। कुछ दूर जा कर लडक़े ने मुसकराकार पूछा, ''- तेरी कुडमाई हो गई?''
इस पर लडक़ी कुछ आँखें चढा कर धत् कह कर दौड ग़ईऔर लडक़ा मुँह देखता रह गया।
दूसरे-तीसरे दिन सब्जीवाले के यहाँदूधवाले के यहाँ अकस्मात दोनों मिल जाते। महीना-भर यही हाल रहा। दो-तीन बार लडक़े ने फिर पूछातेरी कुडमाई हो गईऔर उत्तर में वही 'धत् मिला। एक दिन जब फिर लडक़े ने वैसे ही हँसी में चिढाने के लिये पूछा तो लडक़ीलडक़े की संभावना के विरूद्ध बोली - ''हाँ हो गई।''
''कब?''
''कलदेखते नहींयह रेशम से कढा हुआ सालू।''
लडक़ी भाग गई। लडक़े ने घर की राह ली। रास्ते में एक लडक़े को मोरी में ढकेल दियाएक छावडीवाले की दिन-भर की कमाई खोईएक कुत्ते पर पत्थर मारा और एक गोभीवाले के ठेले में दूध उडेल दिया। सामने नहा कर आती हुई किसी वैष्णवी से टकरा कर अन्धे की उपाधि पाई। तब कहीं घर पहुंचा ।




''राम-रामयह भी कोई लडाई है। दिन-रात खन्दकों में बैठे हड्डियाँ अकड ग़ईं। लुधियाना से दस गुना जाडा और मेंह और बरफ ऊपर से। पिंडलियों तक कीचड में धँसे हुए हैं। जमीन कहीं दिखती नहीं; - घंटे-दो-घंटे में कान के परदे फाडनेवाले धमाके के साथ सारी खन्दक हिल जाती है और सौ-सौ गज धरती उछल पडती है।
इस गैबी गोले से बचे तो कोई लडे। नगरकोट का जलजला सुना थायहाँ दिन में पचीस जलजले होते हैं। जो कहीं खन्दक से बाहर साफा या कुहनी निकल गईतो चटाक से गोली लगती है। न मालूम बेईमान मिट्टी में लेटे हुए हैं या घास की पत्तियों में छिपे रहते हैं।''
''लहनासिंहऔर तीन दिन हैं। चार तो खन्दक में बिता ही दिये। परसों रिलीफ आ जायेगी और फिर सात दिन की छुट्टी। अपने हाथों झटका करेंगे और पेट-भर खाकर सो रहेंगे। उसी फिरंगी मेम के बाग में -- मखमल का-सा हरा घास है। फल और दूध की वर्षा कर देती है। लाख कहते हैंदाम नहीं लेती। कहती हैतुम राजा हो मेरे मुल्क को बचाने आये हो।''
''चार दिन तक पलक नहीं झँपी। बिना फेरे घोडा बिगडता है और बिना लडे सिपाही। मुझे तो संगीन चढा कर मार्च का हुक्म मिल जाय। फिर सात जरमनों को अकेला मार कर न लोटूंतो मुझे दरबार साहब की देहली पर मत्था टेकना नसीब न हो। पाजी कहीं केकलों के घोडे -- संगीन देखते ही मुंह  फाड देते हैंऔर पैर पकडने लगते हैं। यों अँधेरे में तीस-तीस मन का गोला फेंकते हैं। उस दिन धावा किया था - चार मील तक एक जर्मन नहीं छोडा था। पीछे जनरल ने हट जाने का कमान दियानहीं तो -- ''
''नहीं तो सीधे बर्लिन पहुँच  जाते! क्यों?'' सूबेदार हजारसिंह ने मुसकराकर कहा -- ''लडाई के मामले जमादार या नायक के चलाये नहीं चलते। बडे अफसर दूर की सोचते हैं। तीन सौ मील का सामना है। एक तरफ बढ ग़ये तो क्या होगा?''
''सूबेदारजीसच है,'' लहनसिंह बोला - ''पर करें क्याहड्डियों-हड्डियों में तो जाडा धँस गया है। सूर्य निकलता नहींऔर खाई में दोनों तरफ से चम्बे की बावलियों के से सोते झर रहे हैं। एक धावा हो जायतो गरमी आ जाय।''
''उदमीउठसिगडी में कोले डाल। वजीरातुम चार जने बालटियाँ लेकर खाई का पानी बाहर फेंकों। महासिंहशाम हो गई हैखाई के दरवाजे का पहरा बदल ले।'' -- यह कहते हुए सूबेदार सारी खन्दक में चक्कर लगाने लगे।
वजीरासिंह पलटन का विदूषक था। बाल्टी में गँदला पानी भर कर खाई के बाहर फेंकता हुआ बोला - ''मैं पाधा बन गया हूँ । करो जर्मनी के बादशाह का तर्पण !'' इस पर सब खिलखिला पडे और उदासी के बादल फट गये।
लहनासिंह ने दूसरी बाल्टी भर कर उसके हाथ में देकर कहा - ''अपनी बाडी क़े खरबूजों में पानी दो। ऐसा खाद का पानी पंजाब-भर में नहीं मिलेगा।''
''हाँदेश क्या हैस्वर्ग है। मैं तो लडाई के बाद सरकार से दस धुमा जमीन यहाँ माँग लूँगा  और फलों के बूटे लगाऊँगा।''
''लाडी होरा को भी यहाँ बुला लोगेया वही दूध पिलानेवाली फरंगी मेम -''
''चुप कर। यहाँ वालों को शरम नहीं।''
''देश-देश की चाल है। आज तक मैं उसे समझा न सका कि सिख तम्बाखू नहीं पीते। वह सिगरेट देने में हठ करती हैओठों में लगाना चाहती है,और मैं पीछे हटता हूँ  तो समझती है कि राजा बुरा मान गयाअब मेरे मुल्क के लिये लडेग़ा नहीं।''
''अच्छाअब बोधसिंह कैसा है?''
''अच्छा है।''
''जैसे मैं जानता ही न होऊँ ! रात-भर तुम अपने कम्बल उसे उढाते हो और आप सिगडी क़े सहारे गुजर करते हो। उसके पहरे पर आप पहरा दे आते हो। अपने सूखे लकडी क़े तख्तों पर उसे सुलाते होआप कीचड में पडे रहते हो। कहीं तुम न माँदे पड ज़ाना। जाडा क्या हैमौत हैऔर निमोनिया से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते।''
''मेरा डर मत करो। मैं तो बुलेल की खड्ड के किनारे मरूँगा। भाई कीरतसिंह की गोदी पर मेरा सीर होगा और मेरे हाथ के लगाये हुए आँगन के आम के पेड क़ी छाया होगी।''
वजीरासिंह ने त्योरी चढाकर कहा -- ''क्या मरने-मारने की बात लगाई हैमरें जर्मनी और तुरक ! हाँ भाइयोंकैसे''
 दिल्ली शहर तें पिशोर नुं जांदिए,
 कर लेणा लौंगां दा बपार मडिए;
 कर लेणा नादेडा सौदा अडिए --
 (ओय) लाणा चटाका कदुए नूँ ।
 कद्द बणाया वे मजेदार गोरिये,
 हुण लाणा चटाका कदुए नूँ।।
कौन जानता था कि दाढियावालेघरबारी सिख ऐसा लुच्चों का गीत गायेंगेपर सारी खन्दक इस गीत से गूँज  उठी और सिपाही फिर ताजे हो गयेमानों चार दिन से सोते और मौज ही करते रहे हों।




दोपहर रात गई है। अन्धेरा है। सन्नाटा छाया हुआ है। बोधासिंह खाली बिसकुटों के तीन टिनों पर अपने दोनों कम्बल बिछा कर और लहनासिंह के दो कम्बल और एक बरानकोट ओढ क़र सो रहा है। लहनासिंह पहरे पर खडा हुआ है। एक आँख खाई के मुंह  पर है और एक बोधासिंह के दुबले शरीर पर। बोधासिंह कराहा।
''क्यों बोधा भाईक्या है ?''
''पानी पिला दो।''
लहनासिंह ने कटोरा उसके मुंह  से लगा कर पूंछा -- ''कहो कैसे हो?'' पानी पी कर बोधा बोला - ''कँपनी छुट रही है। रोम-रोम में तार दौड रहे हैं। दाँत बज रहे हैं।''
''अच्छामेरी जरसी पहन लो !''
''और तुम?''
''मेरे पास सिगडी है और मुझे गर्मी लगती है। पसीना आ रहा है।''
''नामैं नहीं पहनता। चार दिन से तुम मेरे लिये --''
''हाँयाद आई। मेरे पास दूसरी गरम जरसी है। आज सबेरे ही आई है। विलायत से बुन-बुनकर भेज रही हैं मेमेंगुरू उनका भला करें।'' यों कह कर लहना अपना कोट उतार कर जरसी उतारने लगा।
''सच कहते हो?''
''और नहीं झूठ?'' यों कह कर नहीं करते बोधा को उसने जबरदस्ती जरसी पहना दी और आप खाकी कोट और जीन का कुरता भर पहन-कर पहरे पर आ खडा हुआ। मेम की जरसी की कथा केवल कथा थी।
आधा घण्टा बीता। इतने में खाई के मुंह  से आवाज आई - ''सूबेदार हजारासिंह।''
''कौन लपटन साहबहुक्म हुजूर !'' - कह कर सूबेदार तन कर फौजी सलाम करके सामने हुआ।
''देखोइसी समय धावा करना होगा। मील भर की दूरी पर पूरब के कोने में एक जर्मन खाई है। उसमें पचास से जियादह जर्मन नहीं हैं। इन पेड़ों  के नीचे-नीचे दो खेत काट कर रास्ता है। तीन-चार घुमाव हैं। जहाँ मोड है वहाँ पन्द्रह जवान खडे क़र आया हूँ । तुम यहाँ दस आदमी छोड क़र सब को साथ ले उनसे जा मिलो। खन्दक छीन कर वहींजब तक दूसरा हुक्म न मिलेडटे रहो। हम यहाँ रहेगा।''
''जो हुक्म।''
चुपचाप सब तैयार हो गये। बोधा भी कम्बल उतार कर चलने लगा। तब लहनासिंह ने उसे रोका। लहनासिंह आगे हुआ तो बोधा के बाप सूबेदार ने उँगली से बोधा की ओर इशारा किया। लहनासिंह समझ कर चुप हो गया। पीछे दस आदमी कौन रहेंइस पर बडी हुज्जत हुई। कोई रहना न चाहता था। समझा-बुझाकर सूबेदार ने मार्च किया। लपटन साहब लहना की सिगडी क़े पास मुंह   फेर कर खडे हो गये और जेब से सिगरेट निकाल कर सुलगाने लगे। दस मिनट बाद उन्होंने लहना की ओर हाथ बढा कर कहा -- ''लो तुम भी पियो।''
आँख मारते-मारते लहनासिंह सब समझ गया। मुँह का भाव छिपा कर बोला -- ''लाओ साहब।'' हाथ आगे करते ही उसने सिगडी क़े उजाले में साहब का मुंह  देखा। बाल देखे। तब उसका माथा ठनका। लपटन साहब के पट्टियों वाले बाल एक दिन में ही कहाँ उड ग़ये और उनकी जगह कैदियों से कटे बाल कहाँ से आ गये?''
शायद साहब शराब पिये हुए हैं और उन्हें बाल कटवाने का मौका मिल गया हैलहनासिंह ने जाँचना चाहा। लपटन साहब पाँच वर्ष से उसकी रेजिमेंट में थे।
''क्यों साहबहमलोग हिन्दुस्तान कब जायेंगे?''
''लडाई खत्म होने पर। क्योंक्या यह देश पसन्द नहीं ?''
''नहीं साहबशिकार के वे मजे यहाँ कहाँयाद हैपारसाल नकली लडाई के पीछे हम आप जगाधरी जिले में शिकार करने गये थे -
हाँ- हाँ -- वहीं जब आप खोते पर सवार थे और और आपका खानसामा अब्दुल्ला रास्ते के एक मन्दिर में जल चढने को रह गया थाबेशक पाजी कहीं का - सामने से वह नील गाय निकली कि ऐसी बडी मैंने कभी न देखी थीं। और आपकी एक गोली कन्धे में लगी और पुट्ठे में निकली। ऐसे अफसर के साथ शिकार खेलने में मजा है। क्यों साहबशिमले से तैयार होकर उस नील गाय का सिर आ गया था नआपने कहा था कि रेजमेंट की मैस में लगायेंगे। हां पर मैंने वह विलायत भेज दिया - ऐसे बडे-बडे सींग! दो-दो फुट के तो होंगे?''
''हाँलहनासिंहदो फुट चार इंच के थे। तुमने सिगरेट नहीं पिया?''
''पीता हूँ  साहबदियासलाई ले आता हूँ '' -- कह कर लहनासिंह खन्दक में घुसा। अब उसे सन्देह नहीं रहा था। उसने झटपट निश्चय कर लिया कि क्या करना चाहिए।
अंधेरे में किसी सोने वाले से वह टकराया।
''कौन वजीरसिंह?''
''हांक्यों लहनाक्या कयामत आ गईजरा तो आँख लगने दी होती?''
 (चार)
''होश में आओ। कयामत आई और लपटन साहब की वर्दी पहन कर आई है।''
''क्या?''
''लपटन साहब या तो मारे गये है या कैद हो गये हैं। उनकी वर्दी पहन कर यह कोई जर्मन आया है। सूबेदार ने इसका मुँह नहीं देखा। मैंने देखा और बातें की है। सोहरा साफ उर्दू बोलता हैपर किताबी उर्दू। और मुझे पीने को सिगरेट दिया है?''
''तो अब!''
''अब मारे गये। धोखा है। सूबेदार होराकीचड में चक्कर काटते फिरेंगे और यहाँ खाई पर धावा होगा। उठोएक काम करो। पल्टन के पैरों के निशान देखते-देखते दौड ज़ाओ। अभी बहुत दूर न गये होंगे।
सूबेदार से कहो एकदम लौट आयें। खन्दक की बात झूठ है। चले जाओखन्दक के पीछे से निकल जाओ। पत्ता तक न खडक़े। देर मत करो।''
''हुकुम तो यह है कि यहीं - ''
''ऐसी तैसी हुकुम की ! मेरा हुकुम -- जमादार लहनासिंह जो इस वक्त यहाँ सब से बडा अफसर हैउसका हुकुम है। मैं लपटन साहब की खबर लेता हूँ ।''
''पर यहाँ तो तुम आठ है।''
''आठ नहींदस लाख। एक-एक अकालिया सिख सवा लाख के बराबर होता है। चले जाओ।''
लौट कर खाई के मुहाने पर लहनासिंह दीवार से चिपक गया। उसने देखा कि लपटन साहब ने जेब से बेल के बराबर तीन गोले निकाले। तीनों को जगह-जगह खन्दक की दीवारों में घुसेड दिया और तीनों में एक तार सा बांध दिया।तार के आगे सूत की एक गुत्थी थीजिसे सिगडी क़े पास रखा। बाहर की तरफ जाकर एक दियासलाई जला कर गुत्थी पर रखने--
बिजली की तरह दोनों हाथों से उल्टी बन्दुक को उठा कर लहनासिंह ने साहब की कुहनी पर तान कर दे मारा। धमाके के साथ साहब  के हाथ से दियासलाई गिर पडी। लहनासिंह ने एक कुन्दा साहब की गर्दन पर मारा और साहब आँख ! मीन गौट्ट कहते हुए चित्त हो गये। लहनासिंह ने तीनों गोले बीन कर खन्दक के बाहर फेंके और साहब को घसीट कर सिगडी क़े पास लिटाया। जेबों की तलाशी ली। तीन-चार लिफाफे और एक डायरी निकाल कर उन्हें अपनी जेब के हवाले किया।
साहब की मूर्छा हटी। लहनासिंह हँस कर बोला -- ''क्यों लपटन साहबमिजाज कैसा हैआज मैंने बहुत बातें सीखीं। यह सीखा कि सिख सिगरेट पीते हैं। यह सीखा कि जगाधरी के जिले में नील गायें होती हैं और उनके दो फुट चार इंच के सींग होते हैं। यह सीखा कि मुसलमान खानसामा मूर्तियों पर जल चढाते हैं
और लपटन साहब खोते पर चढते हैं। पर यह तो कहोऐसी साफ उर्दू कहाँ से सीख आयेहमारे लपटन साहब तो बिन डेम के पाँच लफ्ज भी नहीं बोला करते थे।''
लहना ने पतलून के जेबों की तलाशी नहीं ली थी। साहब ने मानो जाडे से बचने के लिएदोनों हाथ जेबों में डाले।
लहनासिंह कहता गया -- ''चालाक तो बडे हो पर माँझे का लहना इतने बरस लपटन साहब के साथ रहा है। उसे चकमा देने के लिये चार आँखें चाहिये। तीन महिने हुए एक तुरकी मौलवी मेरे गाँव आया था। औरतों को बच्चे होने के ताबीज बाँटता था और बच्चों को दवाई देता था। चौधरी के बड क़े नीचे मंजा बिछा कर हुक्का पीता रहता था और कहता था कि जर्मनीवाले बडे पंडित हैं। वेद पढ-पढ क़र उसमें से विमान चलाने की विद्या जान गये हैं। गौ को नहीं मारते। हिन्दुस्तान में आ जायेंगे तो गोहत्या बन्द कर देंगे। मंडी के बनियों को बहकाता कि डाकखाने से रूपया निकाल लो। सरकार का राज्य जानेवाला है। डाक-बाबू पोल्हूराम भी डर गया था। मैंने मुल्लाजी की दाढी मूड दी थी। और गाँव से बाहर निकल कर कहा था कि जो मेरे गाँव में अब पैर रक्खा तो --''
साहब की जेब में से पिस्तौल चला और लहना की जाँघ में गोली लगी। इधर लहना की हैनरी मार्टिन के दो फायरों ने साहब की कपाल-क्रिया कर दी। धडाका सुन कर सब दौड आये ।
बोधा चिल्लया -- ''क्या है?''
लहनासिंह ने उसे यह कह कर सुला दिया कि एक हडक़ा हुआ कुत्ता आया थामार दिया औरऔरों से सब हाल कह दिया। सब बन्दूकें लेकर तैयार हो गये। लहना ने साफा फाड क़र घाव के दोनों तरफ पट्टियाँ कस कर बाँधी। घाव मांस में ही था। पट्टियों के कसने से लहू निकलना बन्द हो गया।
इतने में सत्तर जर्मन चिल्लाकर खाई में घुस पडे। सिक्खों की बन्दूकों की बाढ ने पहले धावे को रोका। दूसरे को रोका। पर यहाँ थे आठ (लहनासिंह तक-तक कर मार रहा था - वह खडा थाऔरऔर लेटे हुए थे) और वे सत्तर। अपने मुर्दा भाइयों के शरीर पर चढ क़र जर्मन आगे घुसे आते थे। थोडे से मिनिटों में वे --
अचानक आवाज आई वाह गुरूजी की फतहवाह गुरूजी का खालसा!! और धडाधड बन्दूकों के फायर जर्मनों की पीठ पर पडने लगे। ऐन मौके पर जर्मन दो चक्की के पाटों के बीच में आ गये। पीछे से सूबेदार हजारसिंह के जवान आग बरसाते थे और सामने लहनासिंह के साथियों के संगीन चल रहे थे। पास आने पर पीछे वालों ने भी संगीन पिरोना शुरू कर दिया।
एक किलकारी और -- अकाल सिक्खाँ दी फौज आई ! वाह गुरूजी दी फतह ! वाह गुरूजी दा खालसा ! सत श्री अकालपुरूख !!!  और लडाई खतम हो गई। तिरेसठ जर्मन या तो खेत रहे थे या कराह रहे थे। सिक्खों में पन्द्रह के प्राण गये। सूबेदार के दाहिने कन्धे में से गोली आरपार निकल गई। लहनासिंह की पसली में एक गोली लगी। उसने घाव को खन्दक की गीली मट्टी से पूर लिया और बाकी का साफा कस कर कमरबन्द की तरह लपेट लिया। किसी को खबर न हुई कि लहना को दूसरा घाव - भारी घाव लगा है।
लडाई के समय चाँद निकल आया थाऐसा चाँदजिसके प्रकाश से संस्कृत-कवियों का दिया हुआ क्षयी नाम सार्थक होता है। और हवा ऐसी चल रही थी जैसी वाणभट्ट की भाषा में 'दन्तवीणोपदेशाचार्य कहलाती। वजीरासिंह कह रहा था कि कैसे मन-मन भर फ्रांस की भूमि मेरे बूटों से चिपक रही थी,जब मैं दौडा-दौडा सूबेदार के पीछे गया था। सूबेदार लहनासिंह से सारा हाल सुन और कागजात पाकर वे उसकी तुरत-बुध्दि को सराह रहे थे और कह रहे थे कि तू न होता तो आज सब मारे जाते।
इस लडाई की आवाज तीन मील दाहिनी ओर की खाई वालों ने सुन ली थी। उन्होंने पीछे टेलीफोन कर दिया था। वहाँ से झटपट दो डाक्टर और दो बीमार ढोने की गाडियाँ चलींजो कोई डेढ घण्टे के अन्दार-अन्दर आ पहुंची । फील्ड अस्पताल नजदीक था। सुबह होते-होते वहाँ पहुँच  जायेंगे,इसलिये मामूली पट्टी बाँधकर एक गाडी में घायल लिटाये गये और दूसरी में लाशें रक्खी गईं। सूबेदार ने लहनासिंह की जाँघ में पट्टी बँधवानी चाही। पर उसने यह कह कर टाल दिया कि थोडा घाव है सबेरे देखा जायेगा। बोधासिंह ज्वर में बर्रा रहा था। वह गाडी में लिटाया गया। लहना को छोड क़र सूबेदार जाते नहीं थे। यह देख लहना ने कहा -- ''तुम्हें बोधा की कसम हैऔर सूबेदारनीजी की सौगन्ध है जो इस गाडी में न चले जाओ।''
''और तुम?''
''मेरे लिये वहाँ पहुँचकर गाडी भेज देनाऔर जर्मन मुरदों के लिये भी तो गाडियाँ आती होंगी। मेरा हाल बुरा नहीं है। देखते नहींमैं खडा हूँ वजीरासिंह मेरे पास है ही।''
''अच्छापर --''
''बोधा गाडी पर लेट गयाभला। आप भी चढ ज़ाओ। सुनिये तोसूबेदारनी होरां को चिठ्ठी लिखोतो मेरा मत्था टेकना लिख देना। और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उसने कहा था वह मैंने कर दिया।''
गाडियाँ चल पडी थीं। सूबेदार ने चढते-चढते लहना का हाथ पकड क़र कहा -- ''तैने मेरे और बोधा के प्राण बचाये हैं। लिखना कैसासाथ ही घर चलेंगे। अपनी सूबेदारनी को तू ही कह देना। उसने क्या कहा था?''
''अब आप गाडी पर चढ ज़ाओ। मैंने जो कहावह लिख देनाऔर कह भी देना।''
गाडी क़े जाते लहना लेट गया। - ''वजीरा पानी पिला देऔर मेरा कमरबन्द खोल दे। तर हो रहा है।''
मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है। जन्म-भर की घटनायें एक-एक करके सामने आती हैं। सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं। समय की धुन्ध बिल्कुल उन पर से हट जाती है।
लहनासिंह बारह वर्ष का है। अमृतसर में मामा के यहाँ आया हुआ है। दहीवाले के यहाँसब्जीवाले के यहाँहर कहींउसे एक आठ वर्ष की लडक़ी मिल जाती है। जब वह पूछता हैतेरी कुडमाई हो गईतब धत् कह कर वह भाग जाती है। एक दिन उसने वैसे ही पूछातो उसने कहा - ''हाँ,कल हो गईदेखते नहीं यह रेशम के फूलोंवाला सालूसुनते ही लहनासिंह को दुःख हुआ। क्रोध हुआ। क्यों हुआ?
''वजीरासिंहपानी पिला दे।''

पचीस वर्ष बीत गये। अब लहनासिंह नं  77 रैफल्स में जमादार हो गया है। उस आठ वर्ष की कन्या का ध्यान ही न रहा। न-मालूम वह कभी मिली थीया नहीं। सात दिन की छुट्टी लेकर जमीन के मुकदमें की पैरवी करने वह अपने घर गया। वहाँ रेजिमेंट के अफसर की चिठ्ठी मिली कि फौज लाम पर जाती हैफौरन चले आओ। साथ ही सूबेदार हजारासिंह की चिठ्ठी मिली कि मैं और बोधसिंह भी लाम पर जाते हैं। लौटते हुए हमारे घर होते जाना। साथ ही चलेंगे। सूबेदार का गाँव रास्ते में पडता था और सूबेदार उसे बहुत चाहता था। लहनासिंह सूबेदार के यहाँ पहुंचा .
जब चलने लगेतब सूबेदार बेढे में से निकल कर आया। बोला -
''लहनासूबेदारनी तुमको जानती हैंबुलाती हैं। जा मिल आ।'' लहनासिंह भीतर पहुंचा । सूबेदारनी मुझे जानती हैंकब सेरेजिमेंट के क्वार्टरों में तो कभी सूबेदार के घर के लोग रहे नहीं। दरवाजे पर जा कर मत्था टेकना कहा। असीस सुनी। लहनासिंह चुप।
मुझे पहचाना?''
''नहीं।''
तेरी कुडमाई हो गई -धत् -कल हो गई- देखते नहींरेशमी बूटोंवाला सालू -अमृतसर में - 
भावों की टकराहट से मूर्छा खुली। करवट बदली। पसली का घाव बह निकला।
वजीरा पानी पिला - उसने कहा था।
स्वप्न चल रहा है। सूबेदारनी कह रही है - ''मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया। एक काम कहती हूँ । मेरे तो भाग फूट गये। सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया हैलायलपुर में जमीन दी हैआज नमक-हलाली का मौका आया है। पर सरकार ने हम तीमियों की एक घँघरिया पल्टन क्यों न बना दीजो मैं भी सूबेदारजी के साथ चली जातीएक बेटा है। फौज में भर्ती हुए उसे एक ही बरस हुआ। उसके पीछे चार और हुएपर एक भी नहीं जिया। सूबेदारनी रोने लगी। अब दोनों जाते हैं। मेरे भाग ! तुम्हें याद हैएक दिन टाँगेवाले का घोडा दहीवाले की दूकान के पास बिगड ग़या था। तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थेआप घोडे क़ी लातों में चले गये थेऔर मुझे उठा-कर दूकान के तख्ते पर खडा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे आँचल पसारती हूँ ।
रोती-रोती सूबेदारनी ओबरी में चली गई। लहना भी आँसू पोंछता हुआ बाहर आया।
'वजीरासिंहपानी पिला -- उसने कहा था।
लहना का सिर अपनी गोद में रक्खे वजीरासिंह बैठा है। जब माँगता हैतब पानी पिला देता है। आध घण्टे तक लहना चुप रहाफिर बोला -- ''कौन ! कीरतसिंह, ?''
वजीरा ने कुछ समझकर कहा -- ''हाँ।''
''भइयामुझे और ऊँचा कर ले। अपने पट्ट पर मेरा सिर रख ले।'' वजीरा ने वैसे ही किया।
''हाँअब ठीक है। पानी पिला दे। बसअब के हाड में यह आम खूब फलेगा। चचा-भतीजा दोनों यहीं बैठ कर आम खाना। जितना बडा तेरा भतीजा हैउतना ही यह आम है। जिस महीने उसका जन्म हुआ थाउसी महीने में मैंने इसे लगाया था।''
वजीरासिंह के आँसू टप-टप टपक रहे थे।
कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढा -- फ्रान्स और बेलजियम -- 68 वीं सूची -- मैदान में घावों से मरा -- नं  77 सिख राइफल्स जमादार लहनसिंह।

Monday, December 19, 2011

मरहूम अदम गोंडवी जी की कुछ रचनाएँ

तुम्हारी  फाईलों  में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँखे जूठी हैं ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत का ढोल पिटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बरबरियत है, नवाबी है

लगी है होड़ सी देखो अमीरी और गरीबी में
ये गांधीवाद के ढांचे की बुनियादी खराबी है

तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रकाबी है



ग़ज़ल


जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में
गाँव तक वो रोशनी  आयेगी कितने साल में

बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई
राम्सुधि की झोपड़ी  सरपंच की चौपाल में

खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल  हो गए
हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में

जिसकी कीमत कुछ न हो  इस भीड़ के माहोल में
ऐसा सिक्का ढालिए मत  जिस्म की टकसाल में

ग़ज़ल - २

जुल्फ अंगड़ाई तबस्सुम  चाँद आइना गुलाब
भुखमरी के मोर्चे पर  इनका शबाब


पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी
इस अहद में किसको फुर्सत है पढ़े दिल की किताब


इस सदी की तिशनगी का जखम होठों पर लिए
बे यकीनी के सफ़र में जिंदगी है एक  अज़ाब


डाल पर मजहब की  पहम खिल रहे दंगो के फूल
सभ्यता रजनीश के हम्माम में हैं बेनकाब

चार दिन फूटपाथ के साए में रहकर देखिये
डूबना आसान है आँखों के सागर में जनाब




काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
 
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नखास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में







घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है
बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है

भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भिखारन-सी
सुबह से फरवरी बीमार पत्नी से भी पीली है

बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है

सुलगते जिस्म की गर्मी का फिर एहसास हो कैसे
मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है






















Sunday, December 18, 2011

एकाग्रता


माप की इकाईयां

१. लम्बाई की माप

१० मिलीमीटर  =  १ सेंटीमीटर
१० सेंटीमीटर    =  १ डेसीमीटर
१० डेसीमीटर    =  १ मीटर
१० मीटर          =   १ डेकामीटर
१० डेकामीटर  =   १ हेक्टोमीटर
१० हेक्टोमीटर -   १ किलोमीटर

२. मात्रा की माप

१० मिली ग्राम     =  १  सेंटीग्राम
१० सेंटी ग्राम       =  १  डेसीग्राम
१० डेसीग्राम        =  १  ग्राम
१० ग्राम              =  १  डेका ग्राम
१० डेका ग्राम      =   १  हेक्टो ग्राम
१०० किलो ग्राम  =   १  क्विंटल
१० क्विंटल         =   १  टन



Thursday, December 15, 2011

JOYA BLOCK POPULATION AT A GLANCE



Sr.
No
Village
Area ( Sq. Km)
House Holds
POPULATION
TOTAL
SC/ST
LITERATE
Male
Female
Male
Female
Male
Female
1
2
3
4
5
6
7
8
9
10
1
Adalpur Taj
244.03
175
672
506
137
102
342
97
2
Afzalpur
25.09
0
0
0
0
0
0
0
3
Ahamadpur Devipura
73.25
49
208
179
20
15
99
26
4
Akbarpur Majra Karondi
47.75
0
0
0
0
0
0
0
5
Akka Nagla
179
74
271
222
30
23
158
49
6
Alehodapur
42.09
80
241
215
132
116
98
1
7
Alimohammadpur
53.02
63
240
195
77
70
56
1
8
Alipur Khurd
32.78
0
0
0
0
0
0
0
9
Amera
146.5
141
493
426
2
4
97
0
10
Amroha (Dehat)
1694.48
928
3348
2945
618
545
915
172
11
Asawar
163.5
126
420
384
31
22
198
95
12
Asgaripur Joya
129.91
197
633
570
20
12
232
23
13
Atairana
188.59
112
432
403
129
119
255
98
14
Atrasi Kalan
330.64
455
1566
1264
98
83
331
31
15
Aurangabad
203.16
203
698
592
99
83
229
31
16
Badoniya
148.93
112
353
316
243
215
199
79
17
Bagarpur Emma
151.76
186
600
514
329
263
211
28
18
Barkhera Rajput
203.16
286
989
846
292
257
393
139
19
Basipur
98.75
38
99
89
49
45
48
24
20
Bhatpura Mafi
127
106
307
282
233
217
169
38
21
Bhikampur Munda
174.43
171
681
557
125
103
250
77
22
Budhanpur Sarak
144.48
207
684
544
372
290
204
81
23
Chak Allipur
39.66
0
0
0
0
0
0
0
24
Chak Bagwani
17.4
0
0
0
0
0
0
0
25
Chak Deeppur
7.69
0
0
0
0
0
0
0
26
Chak Dendera
12.55
0
0
0
0
0
0
0
27
Chak Dhanaura Urf Muradnagar
52.61
89
269
225
53
44
47
2
28
Chak Dhanauri Aheer
17.81
0
0
0
0
0
0
0
29
Chak Faridpur Afjalpur
5.67
0
0
0
0
0
0
0
30
Chak Garmal
21.04
0
0
0
0
0
0
0
31
Chak Jalalpur
14.16
0
0
0
0
0
0
0
32
Chak Janpur
42.49
0
0
0
0
0
0
0
33
Chak Kalilet
50.18
21
74
50
0
0
42
15
34
Chak Mahmood
23.88
16
64
79
0
0
28
3
35
Chak Majhaula
17.4
0
0
0
0
0
0
0
36
Chak Nagli Asdullah
5.26
0
0
0
0
0
0
0
37
Chak Rustampur Badohiya
68.8
54
206
140
119
82
112
15
38
Chak Shonali
10.12
0
0
0
0
0
0
0
39
Chak Suratpur
39.66
23
55
52
0
0
42
21
40
Chak payanti urf Gauspur
159.86
205
670
589
7
5
170
65
41
Chakpandki
11.74
17
81
69
0
0
23
0
42
Chakwaraspur
70.42
43
176
155
0
0
116
22
43
Chandnagar
488.8
361
1410
1207
215
186
744
148
44
Chaubakih Kamalpur
169.16
32
113
106
0
0
62
31
45
Chaudharpur
273.17
464
1730
1402
9
6
279
24
46
Chotipura
163.09
76
300
322
42
29
175
133
47
Chubka
131.12
45
211
169
0
0
43
0
48
Danpur
121.41
29
97
76
0
0
60
12
49
Daryapur
149.33
129
682
590
23
24
290
23
50
Dasipur
72.04
59
191
167
46
28
50
2
51
Daulatpur
70.01
0
0
0
0
0
0
0
52
Deeppur
214.49
168
592
456
36
24
211
25
53
Dendera
160.87
145
449
385
53
50
200
46
54
Deori Urf Hadipur
161.63
261
824
783
305
296
402
130
55
Devipura UrfDhana Nagla
103.6
95
326
274
106
96
191
75
56
Dhakia
357.35
396
1593
1502
20
20
467
118
57
Dhaktora
150.55
82
271
244
61
56
161
53
58
Dhanaura Aheer
261.03
150
534
488
0
0
7
0
59
Dhanora Urf Murad Nagar
125.05
63
412
335
0
0
1
0
60
Dhela Nagla
123.43
72
311
253
0
0
200
55
61
Didauli
541.08
632
2392
1928
647
552
827
144
62
Doolapur Sant Prasad
142.05
0
0
0
0
0
0
0
63
Durgpur
232.3
190
596
523
194
185
220
59
64
Ebrahim Urf Bhabanipur
135.17
86
314
253
5
3
158
66
65
Emnipur
63.95
27
83
74
26
19
54
22
66
Fairdabad Urf Nasirpur
197.49
150
520
431
118
94
150
11
67
Faridpur Afzalpur
82.15
86
319
264
45
38
40
1
68
Faridpur Nikat Rajabpur
180.9
115
433
364
91
67
235
93
69
Farraspura
83.37
86
330
271
11
6
108
5
70
Fatehpur Janib Janul
168.76
225
855
780
15
13
338
108
71
Fatehpur Majra Jiwai
102.79
162
511
465
260
235
114
3
72
Faudapur
138
84
350
307
42
41
196
47
73
Gaffarpur
227.04
194
696
617
300
252
319
74
74
Gangadaspur
191.42
204
687
574
92
69
77
3
75
Gazraulla Prabhuban
188.59
163
515
433
224
167
288
68
76
Ghansoorpur
122.62
119
366
300
5
2
215
82
77
Gulariya
442.35
238
819
755
172
166
346
79
78
Hakampur
154.19
75
287
254
55
46
150
52
79
Haraina
191
103
380
271
0
0
224
97
80
Haryana
176.85
308
954
864
74
72
326
18
81
Hasan Sarai
186.97
0
0
0
0
0
0
0
82
Hatowa
257.39
264
812
682
151
106
193
9
83
Hibatpur
91.46
213
682
582
186
157
264
65
84
Husainpur Majra Manakjoori
79.73
53
212
188
33
24
89
26
85
Hussainpur Near Mallikkher
a 62.32
58
224
221
11
11
72
36
86
Ikonda
288.96
188
792
682
124
106
288
66
87
Int Ka Radha
284.1
110
374
314
8
2
207
71
88
Jagga Nagla
100.77
88
388
348
47
54
162
24
89
Jagwa Kala
168.36
41
158
115
51
31
84
16
90
Jagwa Khurd
196.68
181
630
524
159
138
356
110
91
Jalalabad Majra Sinora
125.86
0
0
0
0
0
0
0
92
Jalalpur Dhana
67.58
209
683
581
344
296
419
177
93
Jalalpur Umar
216.51
120
437
364
56
57
175
26
94
Jamalpuri Majra Nili Khera
114.53
83
228
213
0
0
21
5
95
Jamanpur
77.7
17
102
81
47
28
25
15
96
Jhanakpur Kasba Khas
43.3
0
0
0
0
0
0
0
97
Jiwai
211.66
197
699
591
277
220
133
3
98
Jog Khera
136.38
72
260
230
84
85
160
87
99
Joya
436.27
418
1541
1356
144
129
455
56
100
Kafurpur
79
58
170
135
4
6
114
56
101
Kailsa
395.39
447
1446
1324
480
414
709
205
102
Kala Khera
144.48
172
451
364
0
0
143
3
103
Kala kura
147.31
187
639
526
91
71
296
109
104
Kalali
72.04
35
138
113
0
0
29
2
105
Kalilet
346.82
167
662
575
212
171
348
103
106
Kanpura
190.21
311
1080
957
48
52
411
34
107
Karaiudi
238.77
130
546
428
137
94
208
62
108
Karanpur
116.56
80
370
334
6
5
118
6
109
Karapur
65.97
62
222
178
27
22
127
21
110
Karhat Ramhut
210.44
300
946
816
382
330
434
84
111
Kasampur Majara Alrasi
70.82
12
40
29
0
0
10
1
112
Kasampur Nikat Kalali
94.7
34
119
107
0
0
50
4
113
Katai
359.37
298
808
716
188
157
280
37
114
Kazi Sarai Urf Kanker Sara
i 178.07
394
1531
1231
97
70
251
30
115
Keshopur
59.49
43
170
153
0
0
127
46
116
Khalakpur Khurd
126.67
87
332
266
82
51
128
45
117
Khanpur Majra Nanakjoori
17.81
70
273
232
247
209
121
25
118
Khata
153.79
197
678
625
149
111
330
99
119
Koobi
231.89
122
439
362
0
0
260
123
120
Kua Kheda
89.44
68
240
202
23
21
118
48
121
Lammiya
172.81
102
353
296
47
33
224
119
122
Lodhipur Banjara
201.95
186
526
456
233
193
333
98
123
MD.Niket Rajabpur
160.26
87
331
301
30
25
233
107
124
Madhwa Mafi
122.62
84
296
259
58
53
120
5
125
Majeedpur Atairana
145.29
75
282
209
88
59
136
42
126
Majhauli
69.61
88
361
319
92
86
129
13
127
Majhola Khurd
174.43
93
427
340
108
73
258
91
128
Majoo Pura
24.69
26
90
89
0
0
38
2
129
Makanpur
138.81
34
157
128
11
10
89
39
130
Malipur
77.7
109
372
326
94
84
210
51
131
Malli Khera
155
179
582
512
106
107
143
7
132
Manakjoori
75.27
138
571
464
5
3
300
57
133
Mangupura
168.36
179
592
510
85
98
209
33
134
Masoodpur
76.89
180
629
526
284
211
425
91
135
Mauri Jat
275.6
105
343
327
164
163
159
43
136
Meera Sarai
144.07
259
893
809
507
468
216
14
137
Meerpur
140.03
111
404
369
55
43
107
9
138
Milak Mohamdi
79.73
40
151
119
10
7
78
0
139
Milak Muneempur
86.61
1
1
1
0
0
1
1
140
Milak Sahupura
140.03
70
350
281
4
3
107
19
141
Mitha npur Majra
17.4
98
380
308
88
72
121
10
142
Mohanpur Zanib Janubi
70.82
5
23
20
0
0
15
9
143
Moonda Imma
244.84
270
1300
1012
41
42
280
33
144
Mouammadpur Nawada
48.56
51
153
118
107
80
33
3
145
Mubarakpur Joya
202.75
127
392
357
233
218
174
51
146
Mujaffarpur Patti
30.76
15
51
49
34
34
31
7
147
Muneempur Waispur
114.93
101
376
324
259
226
172
51
148
Muzahidpur Urf Zahidpur
168.76
37
210
165
22
13
86
58
149
Nagla Kalan
119.79
27
77
63
30
23
34
3
150
Nagli Asdullah
118.17
76
265
220
52
41
108
3
151
Nagli Meeranshah
190.21
96
318
286
166
149
119
29
152
Naipura
174.43
96
288
251
0
0
180
91
153
Nanhera Rajput
40.87
105
377
317
233
194
189
59
154
Naraini
139.62
50
186
160
40
41
116
70
155
Naurangipur
66.78
71
208
179
109
97
143
44
156
Naurangpur
214.09
148
482
397
163
131
172
49
157
Nazarpur Rajput
75.27
71
261
204
195
159
142
64
158
Nilikheri
148.12
262
882
866
137
131
318
96
159
Nizam Nagla
74.46
61
193
179
39
35
86
39
160
Pachkaura Meherban Ali
182.52
217
672
583
346
287
318
91
161
Paigamberpur
159.05
189
582
559
264
251
206
64
162
Painti Kalan
550.8
837
3078
2647
130
97
664
24
163
Palauya
161.07
192
717
639
40
32
303
29
164
Pandki
160.67
436
1370
1174
265
219
324
45
165
Papsara
193.85
399
1281
1157
562
494
707
216
166
Patei Khalsa
98.34
780
3266
2716
646
546
1010
313
167
Pipli Kalan Urf Rampur
476
318
1072
903
135
97
521
153
168
Prithvipur Kalan
131.12
154
527
498
257
219
339
165
169
Puranpur
355.33
354
1148
961
215
188
344
18
170
Qasampur Jat
86.61
50
194
165
128
114
65
14
171
Raghunathpur
97.53
151
473
388
108
94
214
71
172
Rajabpur
425.34
416
1724
1417
123
82
785
329
173
Rampur Ghana
79.32
134
585
518
72
66
243
138
174
Rampur Khurd
110.08
204
715
647
173
159
236
28
175
Rampur Sehzadpur
101.98
112
262
238
24
24
157
51
176
Rasoolpur Goojar
186.16
79
324
246
42
29
163
42
177
Rasoolpur Majra Atrasi
75.68
121
437
367
106
87
211
69
178
Rasoolpur Majra Majhauli
94.7
0
0
0
0
0
0
0
179
Safatpur
158.24
147
593
476
175
132
161
14
180
Sahanazpur Kalan
322.55
139
526
444
103
100
301
124
181
Sahaspur AliNagar
376.78
349
1205
1094
129
116
318
58
182
Saidabad
75.27
1
3
3
0
0
3
3
183
Saidpur Khalsa
14.57
0
0
0
0
0
0
0
184
Saithli
112.91
279
784
655
146
116
224
4
185
Sakarpur Samatpur
329.83
179
737
596
103
68
276
47
186
Salamatpur
185.76
174
523
462
110
84
217
46
187
Salarpur Khalsa
243.63
230
728
664
38
39
260
38
188
Salarpur Mafi
105.63
278
727
648
208
196
241
50
189
Saleempur Nawada
108.46
98
387
340
0
0
174
156
190
Salempur
128.29
77
247
219
76
58
39
3
191
Salimpur Majra Atrasi
100.37
113
296
266
296
266
101
12
192
Sandalpur
62.73
0
0
0
0
0
0
0
193
Sarifpura Majra Sibora
123.84
62
220
167
70
33
71
9
194
Sarkara Kamal
300.29
217
799
697
74
68
552
270
195
Sarkarhi Mundi
142.86
43
163
151
44
39
90
41
196
Sarkari Aziz
135.98
283
928
809
365
322
532
222
197
Sekhupura Majra Karaudi
25.9
32
97
105
0
0
51
28
198
Shadra Urf Faiyaznagar
128.69
95
336
280
58
46
200
78
199
Shahpur Farraspur
88.22
137
408
378
138
117
170
14
200
Shahzadpur Khurd
34.4
15
43
41
0
0
19
0
201
Shaunali
203.97
322
1000
860
81
78
340
50
202
Shekhupura Goojar
269.13
35
168
159
24
20
56
5
203
Sihali
122.62
71
251
202
66
52
142
45
204
Sinaura Jalalabad
290.17
208
685
606
95
84
352
134
205
Sirsa Khumar
206.4
351
1379
1011
335
259
404
81
206
Sirsa Manihar
105.63
76
247
211
70
51
104
32
207
Sirsa Mohan
110.08
85
215
210
63
52
137
72
208
Siwora
117.77
103
338
274
5
3
62
3
209
Sudanpur
227.87
144
509
434
47
46
248
44
210
Tarupur Awwal
50.59
17
46
40
35
28
19
3
211
Tarupur Doyam
83.77
0
0
0
0
0
0
0
212
Telipura Mafi
259.82
293
1031
953
316
282
459
71
213
Tikiya
112.76
148
469
390
0
0
150
4
214
Tohafapur
189.8
181
565
463
268
215
209
34
215
Umar Mohammadpur
113.32
84
396
305
130
77
215
55
216
Umarpur
184.95
149
476
421
125
121
280
73
217
Umrijanib Garb
87.01
103
422
346
133
102
128
19
218
Wajidpur
214.49
172
597
519
256
242
295
93
219
Waraspur
78.11
58
239
230
0
0
158
112
220
Waraspur Majra Katai
64.75
72
373
302
155
128
134
41