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Saturday, June 22, 2019

पत्नी बार बार माँ पर आरोप लगाए जा रही थी और पति बार बार पत्नी को हद में रहने का निवेदन कर रहा था पर पत्नी चुप ही नही हो रही थी और जोर जोर से चीख चीख कर कह रही थी कि अंगूठी मेज पर से हो न हो मां जी ने ही उठाई है क्योंकि मेरे ओर तुम्हारे अलावा इस कमरे में कोई नहीं आया और अंगूठी मेने मेज पर ही धरि थी। 







बात जब पति की बर्दाश्त के बाहर हो गई 
तो उसने पत्नी के गाल पर एक जोरदार 
तमाचा दे मारा अभी तीन महीने पहले ही 
तो शादी हुई थी।

पत्नी से तमाचा सहन नही हुआ। वह घर 
छोड़कर जाने लगी और जाते जाते 
पति से एक सवाल पूछा कि तुमको 
अपनी मां पर इतना विश्वास क्यूं है..??

तब पति ने जो जवाब दिया उस जवाब 

को सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी मां 
ने सुना तो उसका मन भर आया पति 
ने पत्नी को बताया कि "जब वह 
छोटा था तब उसके पिताजी की मृत्यु
हो गई, मां मोहल्ले के घरों मे झाडू 
पोछा लगाकर जो कमा पाती थी 
उससे एक वक्त का खाना आता 
था मां एक थाली में मुझे 
परोस देती थी और खाली 
डिब्बे को ढककर रख देती 
थी और कहती थी मेरी 
रोटियां इस डिब्बे में है 
बेटा तू खा ले मैं भी 
हमेशा आधी रोटी 
खाकर कह देता था 
कि मां मेरा पेट भर 
गया है मुझे और 
नही खाना है।

मां ने मुझे 
मेरी झूठी 
आधी रोटी खाकर 
मुझे पाला पोसा और 
बड़ा किया है आज मैं दो 
रोटी कमाने लायक हो गया 
हूं लेकिन यह कैसे भूल सकता 
हूं कि मां ने उम्र के उस पड़ाव 
पर अपनी इच्छाओं को मारा है, 
वह मां आज उम्र के इस पड़ाव 
पर किसी अंगूठी की भूखी होगी.... 
यह मैं सोच भी नही सकता।

तुम तो तीन महीने से मेरे साथ हो 
मैंने तो मां की तपस्या को पिछले 
पच्चीस वर्षों से देखा है...

Thursday, June 20, 2019

परमात्मा भाग-16

 ईश्वर प्राप्ति हेतु शरणागति ही वो ब्रह्मास्त्र है जिसके बिना जीव ईश्वर प्राप्ति का अपना लक्ष्य नहीं पा सकता है। हमें भगवान की कथा उनकी लीलायें पढ़नी हैं, सुननी हैं, सुनानी है।  जीव या तो भगवान की शरण में जा सकता है या फिर त्रिगुणात्मक माया प्रकृति की शरण ग्रहण करनी होगी दोनों की शरणागति एक साथ नहीं हो सकती। वर्तमान में हम 100 प्रतिशत त्रिगुणात्मक माया प्रकृति की ही शरण ग्रहण किए हुए हैं । अब हमें इस त्रिगुणात्मक माया प्रकृति की शरण छोड़कर परमात्मा की शरण में जाना है इसमें सर्वप्रथम हमें अपने आप को जानने का प्रयास करना है क्योंकि जब तक हम इस स्थूल शरीर को ही अपना स्वरूप मानते रहेगें तब तक परमात्मा की ओर चलना असम्भव है। हम अपने आप को जब तक यह मानते रहेंगे कि यह भौतिक शरीर ही हमारा स्वरूप है, तब तक शरीर और संसार की कामना उत्पन्न होती रहेगीं और ये एक ऐसा रोग है जिसका इलाज केवल परमात्मा के पास ही है, संसार में इसका इलाज कहीं भी नहीं है, एक कामना पूर्ण होते ही दूसरी कामना तत्काल उत्पन्न हो जायगी इसी को माया कहते हैं, जीवात्मा अनादिकाल से इसी मायाजाल में फंसा हुआ है। अब इन कामनाऔ को छोड़ना होगा।

" बहुत तड़फाया है इन कामनाओं  ने हमको अब इन कामनाऔ को तड़फता छोड़ दो " 

हम जिसके बारे में अधिक सोचते हैं उसी से  हमारा लगाव होना प्रारम्भ होजाता है, संसार में भी ऐसा ही होता है।  भगवान श्री राम ने कहा है कि -

मम गुन गावत पुलक शरीरा।  गद गद गिरा नैन बहे नीरा।।

भगवान कहते हैं कि मेरे गुण गाते समय भक्त का हृदय रुंध जाये, वाणी गद गद हो जाय और नेत्रो से अश्रुधारा बह निकले वही भक्त मुझे प्रिय है। भगवान कहते हैं कि-

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काड्ंक्षति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान यः स मे प्रियः।।

भगवान कहते हैं, जो न तो कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभाशुभ सबका त्यागी है वही मेरा भक्त मुझे प्रिय है।