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Monday, April 15, 2019

परमात्मा भाग-15

 ईश्वर प्राप्ति हेतु शरणागति ही वो ब्रह्मास्त्र है जिसके बिना जीव ईश्वर प्राप्ति का अपना लक्ष्य नहीं पा सकता है। मानव को भगवान की कथा उनकी लीलायें पढ़नी हैं, सुननी हैं, सुनानी है।  जीव या तो भगवान की शरण में जा सकता है या फिर त्रिगुणात्मक माया प्रकृति की शरण ग्रहण करनी होगी दोनों की शरणागति एक साथ नहीं हो सकती। वर्तमान में हम 100 प्रतिशत त्रिगुणात्मक माया प्रकृति की ही शरण ग्रहण किए हुए हैं अब हमें इस त्रिगुणात्मक माया प्रकृति की शरण छोड़कर परमात्मा की शरण में जाना है इसमें सर्वप्रथम हमें अपने आप को जानने का प्रयास करना है क्योंकि जब तक हम इस स्थूल शरीर को ही अपना स्वरूप मानते रहेगें तब तक परमात्मा की ओर चलना असम्भव है। हम अपने आप को जब तक यह मानते रहेंगे कि यह भौतिक शरीर ही हमारा स्वरूप तब तक शरीर और संसार की कामना उत्पन्न होती रहेगीं और ये एक ऐसा रोग है जिसका इलाज केवल परमात्मा के पास ही है, संसार में इसका इलाज कहीं भी नहीं है, एक कामना पूर्ण होते ही दूसरी कामना तत्काल उत्पन्न हो जायगी इसी को माया कहते हैं, जीवात्मा अनादिकाल से इसी मायाजाल में फंसा हुआ है। अब इन कामनाओ को छोड़ना होगा।
" बहुत तड़फाया है इन कामनाओ  ने हमको अब इन कामनाओ को तड़फता छोड़ दो "
           

Sunday, April 14, 2019

रिश्ते बच जाते हैं

सुबह सुबह पति पत्नी में झगड़ा हो गया,

पत्नी गुस्से मे बोली - बस, बहुत कर लिया बरदाश्त, अब एक मिनट भी तुम्हारे साथ नही रह सकती।

पति भी गुस्से मे था, बोला "मैं भी तुम्हे झेलते झेलते तंग आ चुका हुं।

पति गुस्से मे ही दफ्तर चला गया पत्नी ने अपनी मां को फ़ोन किया और बताया कि वो सब छोड़ छाड़ कर बच्चो समेत मायके आ रही है, अब और ज़्यादा नही रह सकती इस नरक मे।

मां ने कहा - बेटी बहु बन के आराम से वही बैठ, तेरी बड़ी बहन भी अपने पति से लड़कर आई थी, और इसी ज़िद्द मे तलाक लेकर बैठी हुई है, अब तुने वही ड्रामा शुरू कर दिया है, ख़बरदार जो तुने इधर कदम भी रखा तो... सुलह कर ले पति से, वो इतना बुरा भी नही है।

मां ने लाल झंडी दिखाई तो बेटी के होश ठिकाने आ गए और वो फूट फूट कर रो दी, जब रोकर थक गई तो दिल हल्का हो चुका था,

पति के साथ लड़ाई का सीन सोचा तो अपनी खुद की भी काफ़ी गलतियां नज़र आई।

मुहं हाथ धोकर फ्रेश हुई और पति के पसंद की डीश बनाना शुरू कर दी, और साथ स्पेशल खीर भी बना ली, सोचा कि शाम को पति से माफ़ी मांग लुंगी, अपना घर फिर भी अपना ही होता है।

पति शाम को जब घर आया तो पत्नी ने उसका अच्छे से स्वागत किया, जैसे सुबह कुछ हुआ ही ना हो पति को भी हैरत हुई। खाना खाने के बाद पति जब खीर खा रहा था तो बोला डिअर, कभी कभार मैं भी ज़्यादती कर जाता हूँ, तुम दिल पर मत लिया करो, इंसान हूँ, गुस्सा आ ही जाता है।

पति पत्नी का शुक्रिया अदा कर रहा था, और पत्नी दिल ही दिल मे अपनी मां को दुआएं दे रही थी, जिसकी सख़्ती ने उसको अपना फैसला बदलने पर मजबूर किया था, वरना तो जज़्बाती फैसला घर तबाह कर देता।

अगर माँ-बाप अपनी शादीशुदा बेटी की हर जायज़ नाजायज़ बात को सपोर्ट करना बंद कर दे तो रिश्ते बच जाते है।

चुनाव 2019

मैं एक सप्ताह पहले ही मायावती के चुनाव के बाद NDA में शामिल होने के बारे में फेसबुक पर एक लाइन की पोस्ट डाल चुका हूं।

बात ये है, कि कांग्रेस तो कहीं आएगी ही नही। ठगबंधन को जरूर कुछ सीट मिलेंगी लेकिन सरकार बनाने की कुब्बत ठगबंधन में नहीं होगी। मायावती ठगबंधन की बजह से 2014 से बेहतर स्थिति में होगी। अगर उसे अस्तित्व बचाये रखना है तो उसे BJP/NDA का सहारा लेना पड़ेगा और नही लेगी सहारा तो ED और CBI जिंदाबाद।

मायावती का वोटबैंक भी इस चाल से वाकिफ है, इसलिए जहां गठबंधन का उमीदवार BSP का नहीं है वहां वे भाजपा को वोट कर रहे है। इन शतरंजी चालों को मुस्लिम और यादव वोटर समझने में नाकाम रहे हैं, और उत्तरप्रदेश की अनेकों सीटों पर ठगबंधन के समाजवादी  उम्मीदवारो को केवल मुस्लिम और यादव वोट ही मिलने के कारण उन्हें करारी हार का मुंह देखना पड़ेगा तथा कोर भाजपा वोट के साथ साथ दलित वोट भी मिलने के कारण भाजपा उम्मीदवार जीत का परचम लहरायेंगे।


भार, आयतन व दूरी कन्वर्शन तालिका




ऑनलाइन पैसा

जब ऑनलाइन पैसा कमाने की बात आती है, तो यह तय करना काफी मुश्किल हो सकता है कि क्या सही है और क्या गलत है। बहुत से लोग विभिन्न पाठ्यक्रमों को बेच रहे हैं जो कि चाँद और सितारों को तोड़ लाने का वायदा करते हैं, लेकिन एक बार जब आप वास्तविकता से रूबरू होते है तो उनमें से अधिकांश को छोड़ देते है।

इस लेख में, मैं आपको अपनी खुद की वेबसाइट पर ऑनलाइन पैसे कमाने के बारे में 10 सच बताऊंगा।

(1)सफलता कैसे मिले, इसकी कोई गाइड नहीं है
(2)यह कोई बहाना नहीं है कि आपके पास काम करने की पृष्ठभूमि या अनुभव नहीं है
(3)एक मुफ्त समाधान चुनना आपको महंगा पड़ सकता है
(4) आपका ज्ञान आपके विचार से अधिक मूल्यवान है
(5) दुनियाभर में आपके समय की कोई कीमत नही है
(6) उन स्थानों को लक्षित करना सुनिश्चित करें जहां अन्य सफलतापूर्वक पकड़ बना लेते हैं
(7) गलतियां करें, उनसे सीख ले और उनही दोहराया न जाये
(8) अकेले कार्य करना कठिन है
(9)अनावश्यक सेवाओं वट्रैफ़िक कहां से आ रहा है, इसके बीच बहुत बड़ा अंतर है मशीनरी की खरीद न करे
(10)ट्रैफ़िक कहां से आ रहा है, इसके बीच बहुत बड़ा अंतर है

परमात्मा भाग-14

 ईश्वर प्राप्ति हेतु शरणागति ही वो ब्रह्मास्त्र है जिसके बिना जीव ईश्वर प्राप्ति का अपना लक्ष्य नहीं पा सकता है। शरणागति केवल मन को ही करनी है और मन पर अनादिकाल से त्रिगुणात्मक माया प्रकृति का पक्का रंग चढ़ा हुआ है  ऐसा मन भगवान में नहीं लगेगा ऐसे में हमें गुरु की आवश्यकता है, जो अपनी कृपा से हमारे गन्दे मन को परमात्मा में लगाने में मदद करें। महापुरुष का संग तो आवश्यक है ही और ऐसा कोई महापुरुष दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा जो केवल ईश्वर सम्बन्धी ही बात करे इस लिये समस्या बहुत जटिल है।  इस स्थिति से निपटने के लिए भगवान के दरवाजे पर ही दस्तक  देनी चाहिए और एकाग्र मन से प्रार्थना करनी चाहिए कि हे प्रभु आप ही निराकार हैं आप ही साकार हैं आप किसी के पुत्र बनते हैं तो किसी के पिता बनते हैं ,किसी के मित्र बनते हैं तो किसी के गुरु भी बने हैं, मैं सब ओर से निराश  होकर आपके पास आया हूँ आप या तो किसी अपने जैसे गुरु के पास मुझे भेज दें या फिर आप स्वयं ही मेरे गुरु बन जायें।

जैसे बन्जर भूमि में सैंकड़ों साल से कुछ भी अनाज पैदा नहीं हुआ तो उस बन्जर भूमि में यदि हम अनाज उगाना चाहें तो हमें बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, प्रारम्भ में इच्छा न होते हुए भी उस भूमि पर हल चलाना, पानी देना, खाद डालना ये सब करना होगा फिर भी गारन्टी नहीं कि कामयाबी मिलेगी  ही, लेकिन हमें निराश नहीं होना है, बार-बार मेहनत करेंगे तो एक दिन  कामयाबी मिलेगी ही। ठीक इसी प्रकार अनादिकाल से हमारे अन्तःकरण में त्रिगुणात्मक माया प्रकृति का मैल चढ़ा हुआ है, ऐसे गन्दे अन्तःकरण में एक पल के लिए भी ईश्वर सम्बन्धी बातें नहीं ठहर सकती, ऐसी दशा में हमें इच्छा न होते हुए भी भगवान की कथा, उनकी लीला पढ़नी हैं, सुननी हैं, सुनानी  हैं। रामायण कहती है कि -

बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मौह न भाग।
मौह गये बिनु रामपद होई न दृढ अनुराग।।

ईश्वर की लीलाऐं कथा, सतसंग इच्छा न होते हुए भी लगातार सुनने से हमारे अन्तःकरण में हलचल होने लगती है। 

Saturday, April 13, 2019

पुरुषोत्तम राम

एकटक देर तक उस सतपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से बोल निकले :

"कहो राम! सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ?"

राम मुस्कुराए: "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मूल्य...?"

    "जानते हो राम! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ जब तुम जन्में भी नहीं थे। यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो? कैसे दिखते हो? क्यों आओगे मेरे पास..? बस इतना पता था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा..."

राम ने कहा: "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को सबरी के आश्रम में जाना है।"

     "एक बात बताऊँ प्रभु! भक्ति के दो भाव होते हैं। पहला मर्कट भाव, और दूसरा मार्जार भाव।

बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है ताकि गिरे न... उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है........

".....पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है... मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हे क्या पकड़ना...।"

राम मुस्कुरा कर रह गए।

भीलनी ने पुनः कहा: "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न... कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं। तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी... यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते?"

राम गम्भीर हुए। कहा:

"भ्रम में न पड़ो मां! राम क्या रावण का वध करने आया है?
......... अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर कर सकता है।

......... राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था।

............ जब कोई कपटी भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ...... एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है।

.......... राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाय तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है।

............ राम वन में इसलिए आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया मां...!"

      सबरी एकटक राम को निहारती रहीं।

 राम ने फिर कहा:

"राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के लिए आदर्श की स्थापना के लिए।

........... राम निकला है ताकि विश्व को बता सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है।

.............. राम निकला है कि ताकि भारत को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है।

.............. राम आया है ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है,

............  राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय।

......और,

.............. राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी सबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं।"

सबरी की आँखों में जल भर आया। उसने बात बदलकर कहा: "बेर खाओगे राम?

राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां..."

सबरी अपनी कुटिया से छोटी सी टोकरी में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया।

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा: "मीठे हैं न प्रभु?"

   "यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है...।"

  सबरी मुस्कुराईं, बोलीं: "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम!"