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Sunday, September 11, 2011

दुष्ट की साहयता

एक बार एक बाघ के गले में हड्डी अटक गयी. बाघ ने उसे निकालने की बड़ी चेष्टा की, पर उसे सफलता नहीं मिली.  पीड़ा से परेशान हो कर वह इधर उधर दौड़ भाग करने लगा.  किसी भी जानवर को सामने देखते ही वह कहता - भाई!  यदि तुम मेरे गले से हड्डी को बाहर निकाल दो तो मै तुम्हें  पुरस्कार दूंगा और आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूँगा.  परन्तु कोई भी जीव भय के कारण उस की सहायता करने को राजी नही  हुआ. 
  पुरस्कार के लोभ में आख़िरकार एक बगला तैयार हुआ. उसने बाघ के मुंह में अपनी लम्बी चौंच डाल कर अथक प्रयास के बाद बाघ के गले की  हड्डी को बाहर निकाल दिया. बाघ को बड़ी राहत मिली. बगले ने जब बाघ से अपना पुरस्कार माँगा तो बाघ आग बबूला होकर दांत पीसते हुए बोला- अरे मूर्ख! तूने बाघ के मुंह में अपनी चौंच डाल दी थी, उसे तू सुरक्षितरूप से बाहर निकाल सका, इसको अपना भाग्य न मान कर ऊपर से पुरस्कार मांग रहा है? यदि तुझे अपनी जान प्यारी है तो मेरे सामने से दूर हो जा, नहीं तो अभी तेरी गर्दन मरोड़ दूंगा.  यह सुनकर बगला स्तब्ध रह गया  और तत्काल वहां से चल दिया. इसी लिए कहते हैं कि- दुष्टों की साहयता करना भी  अच्छा नहीं.  
 

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