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Sunday, February 5, 2012

लाल बहादुर शास्त्री


            
‘एक लडका काशी के ‘हरिश्चंद्र हाइस्कूल’ में पढता था । उसका गांव काशी से ८ मील दूर था । वो वहां से प्रतिदिन पैदल पाठशाला जाता । रास्ते में गंगा नदी पार करनी पडती थी । उस समय गंगा पार करवानेके लिए नाववाला दो पैसे लेता था । दो पैसे जाने के और दो वापस आने के, यानी एक आना; इस हिसाब से प्रतिमाह लगभग दो रुपये । उस समय सोने का मूल्य सौ रुपये प्रति तोले से भी कम  था, इसलिए यह राशी भी बहुत अधिक लगती थी ।

माता-पिता पर पैसों का दबाव न आए, ऐसा सोचकर उस बालक ने तैरना सीख लिया । गर्मी, बरसात अथवा ठंडी हो, किसी भी ऋतु में वह गंगा तैरकर पार करता था । बहुत दिन बीत गए । एक दिन पौष माह की हाथ-पांव गला देने वाली ठंडी में वह सुबह पाठशाला जाने हेतु पानी में उतरा । तैरते हुए नदी के मध्यभाग में पहुंचा । एक नाव में सवार होकर कुछ यात्री नदी पार कर रहे थे । उन्हें लगा कि एक छोटा लडका नदी में डूब रहा है, इसलिए उन्होंने नाव उसके समीप ली और उसे नाव में खींच लिया । उस लडके के मुखपर तिल मात्र भी डर अथवा चिंता नहीं थी । उसका असामान्य साहस देखकर सब लोग आश्चर्यचकित हो गए ! 

लोग : अभी तुम डूबकर मर जाते तो ? ऐसा साहस करना योग्य नहीं !
 
लडका : साहस एक गुण है । साहसी होना ही चाहिए । जीवन में विघ्न-संकट आएंगे, उनका सामना करने के लिए और उन पर विजय प्राप्त करने के लिए साहस आवश्यक है । अभी से साहसी नहीं बनूंगा, तो जीवन में बडे-बडे काम कैसे कर  पाऊंगा ?
 
लोग : ऐसे समय पर तैरने क्यों आए हो ? दोपहर में क्यों नहीं आते ?
 
लडका : मैं तैरने के लिए नदी में नहीं आया हूं । मैं तो पाठशाला जा रहा हूं ।
 
लोग : नाव में बैठकर जाओ !
 
लडका : प्रतिदिन चार पैसे लागते है । मुझे मेरे गरीब माता-पिता पर बोझ नहीं बनना है । मुझे अपने पैरों पर खडा होना है । यदि मेरा खर्च बढ गया, तो माता-पिता की चिंता बढेगी । उन्हें घर चलाने में कठिनाई होगी ।

लोग उसकी ओर आदर से देखते ही रह गए । वही लडका आगे जाकर भारत का प्रधानमंत्री बना । कौन था वह बालक ? वे थे लाल बहादुर शास्त्री । इतने बडे पद पर होते हुए भी उनमें सच्चाई, निर्मलता, प्रमाणिकता, साहस, साधापन, देशप्रेम इत्यादि गुण थे । वे सदाचार के जीवित उदाहरण थे । ऐसे महापुरुष अल्प काल राज्य करने पर भी जनतापर अपना प्रभाव छोड जाते हैं ।’

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