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Tuesday, February 28, 2012

रहीम के दोहे भाग-दो

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय॥1
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥2
मीठा सब से बोलिए, फैले सुख चहुँ ओरे!
वाशिकर्ण है मंत्र येही, ताज दे वचन कठोर॥3
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय4
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं5
जिन ढूँढा तिन पाइयॉं, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ6
सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप7
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौली के, तब मुख बाहर आनि8
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप9
काल्‍ह करै सो आज कर, आज करै सो अब्‍ब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब्‍ब9
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय10
दोस पराए देखि  करि, चला हसंत हसंत।
अपने या न आवई, जिनका आदि न अंत11
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्‍यान।
मोल करो तलवार के, पड़ा रहन दो म्‍यान12
सोना, सज्‍जन, साधुजन, टूटि जुरै सौ बार।
दुर्जन कुंभ-कुम्‍हार के, एकै धका दरार13
पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़।
ताते या चाकी भली, पीस खाए संसार14
कॉंकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय।
ता चढ़ मुल्‍ला बॉंग दे, बहिरा हुआ खुदाए15

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