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Tuesday, April 9, 2019

परमात्मा भाग-11

 भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता में  कहते हैं कि :-

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।

भावार्थ यह है कि भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को अन्तिम बात बताते हुए कहते हैं कि है अर्जुन तू समस्त प्रकार के धर्मो का परित्याग करके पूर्ण रूप से केवल मेरी ही शरण में आजा मैं तेरे समस्त कर्मो को ही समाप्त करके तेरा उद्धार कर दुंगा तू चिन्ता मत कर।

 जो भक्त पूर्ण रूप से   भगवान की शरण में आ जाता है भगवान ऐसे अपने प्रिय भक्त की स्वयं देखरेख करते हैं और सदैव उसकी रक्षा करते हैं। इसकी पुष्टि गीता के इस श्लोक से होती है -

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम।।

भगवान कहते हैं कि जो भक्त अनन्यरूप से मेरी भक्ति करता है मैं उसकी सब तरह से रक्षा करता हूँ उसको फिर कभी मायाजाल में नहीं फसंने देता सदा के लिए उसका उद्धार कर देता हूँ।
                 
ईश्वर की कृपा प्राप्ति हेतु शरणागति ही वो ब्रह्मास्त्र है जिसके बिना जीव ईश्वर प्राप्ति का अपना लक्ष्य नहीं पा सकता । शरणागति से ईश्वर कृपा प्राप्त होगी और ईश्वर कृपा से ही जीव की मायानिवृत्ति होगी और मायानिवृत्ति होने पर तत्काल  लक्ष्य प्राप्ति सम्भव है। ईश्वर प्राप्ति का यही एक सही साधन है और वो है भक्ति मार्ग। 

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