अब तक यह बताया गया तथा वेदशास्त्रो, पुराणो आदि से प्रमाणित किया गया कि परमात्मा को कोई नहीं नहीं जान सकता है। परन्तु वेदशास्त्र, पुराण यह भी कहते हैं कि परमात्मा को 100 प्रतिशत जाना जा सकता है और कितने ही भक्तो ने ईश्वर को जाना है, ईश्वर को प्राप्त किया है।
आज से इसी बात पर चर्चा होगी कि परमात्मा को कैसे प्राप्त करे परमात्मा को कैसे जाने। तीन तत्व हैं (1) जीव (2)माया अथवा प्रकृति (3)ब्रह्म, जीव माया के आधीन है और माया तथा जीव ये दोनो परमात्मा के आधीन हैं। परमात्मा जीव, माया पर शासन करता है। इसकी पुष्टि ये वेदमन्त्र करता है :-
क्षरं प्रधानममृताक्षरं हरः क्षरात्मनावीशते देव एकः ।
तस्याभिध्यानाद्योजनात्तत्वभावाद्भूश्चान्ते विश्वमायानिवृत्तिः।।
प्रधानम् का मतलब है माया प्रकृति जो क्षर है परिवर्तन व विनाशशील है। अक्षर का मतलब है जीव जो अमृताक्षरम् अथवा अविनाशी है। क्षरात्मनावीशते देव एकः इसका मतलब है कि क्षर और अक्षर इन दोनों पर एक ईश्वर शासन करता है।
चूँकि जीव माया के आधीन है माया से परे होने पर ही ब्रह्मसाक्षात्कार होगा। मायाधीन जीवात्मा को ब्रह्म का दर्शन नहीं होगा।
आज से इसी बात पर चर्चा होगी कि परमात्मा को कैसे प्राप्त करे परमात्मा को कैसे जाने। तीन तत्व हैं (1) जीव (2)माया अथवा प्रकृति (3)ब्रह्म, जीव माया के आधीन है और माया तथा जीव ये दोनो परमात्मा के आधीन हैं। परमात्मा जीव, माया पर शासन करता है। इसकी पुष्टि ये वेदमन्त्र करता है :-
क्षरं प्रधानममृताक्षरं हरः क्षरात्मनावीशते देव एकः ।
तस्याभिध्यानाद्योजनात्तत्वभावाद्भूश्चान्ते विश्वमायानिवृत्तिः।।
प्रधानम् का मतलब है माया प्रकृति जो क्षर है परिवर्तन व विनाशशील है। अक्षर का मतलब है जीव जो अमृताक्षरम् अथवा अविनाशी है। क्षरात्मनावीशते देव एकः इसका मतलब है कि क्षर और अक्षर इन दोनों पर एक ईश्वर शासन करता है।
चूँकि जीव माया के आधीन है माया से परे होने पर ही ब्रह्मसाक्षात्कार होगा। मायाधीन जीवात्मा को ब्रह्म का दर्शन नहीं होगा।
No comments:
Post a Comment