बात है परमात्मा को जानने की,
शास्त्रो, वेदो से, पुराणो से पमाणित किया गया कि परमात्मा को प्राकृतिक इंद्रीय मन वाणी बुद्धि से न तो देख सकते हैं न जान सकते हैं।
जो इंद्रीय मन वाणी बुद्धि जिस परमात्मा के किसी एक अंश की शक्ति से अपना अपना कार्य करती हैं वही वास्तव में ब्रह्म है, जिस ब्रह्म की उपासना हमारी प्राकृतिक इंद्रीय मन वाणी बुद्धि करती हैं वह ब्रह्म का वास्तविक स्वरूप नहीं है। जो मनुष्य यह कहते हैं कि हमने ईश्वर को जान लिया है, देखलिया है ऐसा वे अपने अहंकार वश कहते हैं, जो मनुष्य यह कहते हैं कि परमात्मा परमात्मा को प्राकृतिक इंद्रीय मन वाणी बुद्धि से परमात्मा के आदि अन्त और मध्य का पता नहीं लग सकता है वास्तव में वही मनुष्य ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को जानता है। इसकी पुष्टि ये वेदमन्त्र करता है -
यस्यामतं तस्य मतं मतं यस्य न वेद सः।
अविज्ञातं विजानतां विज्ञातमविजानताम्।।
शास्त्रो, वेदो से, पुराणो से पमाणित किया गया कि परमात्मा को प्राकृतिक इंद्रीय मन वाणी बुद्धि से न तो देख सकते हैं न जान सकते हैं।
जो इंद्रीय मन वाणी बुद्धि जिस परमात्मा के किसी एक अंश की शक्ति से अपना अपना कार्य करती हैं वही वास्तव में ब्रह्म है, जिस ब्रह्म की उपासना हमारी प्राकृतिक इंद्रीय मन वाणी बुद्धि करती हैं वह ब्रह्म का वास्तविक स्वरूप नहीं है। जो मनुष्य यह कहते हैं कि हमने ईश्वर को जान लिया है, देखलिया है ऐसा वे अपने अहंकार वश कहते हैं, जो मनुष्य यह कहते हैं कि परमात्मा परमात्मा को प्राकृतिक इंद्रीय मन वाणी बुद्धि से परमात्मा के आदि अन्त और मध्य का पता नहीं लग सकता है वास्तव में वही मनुष्य ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को जानता है। इसकी पुष्टि ये वेदमन्त्र करता है -
यस्यामतं तस्य मतं मतं यस्य न वेद सः।
अविज्ञातं विजानतां विज्ञातमविजानताम्।।
No comments:
Post a Comment