जीवन में हमें सबकुछ मालूम नहीं होता तो जो हमे मालूम नहीं है उसकी जानकारी लेने के लिए हमे गुरु की जरूरत होती है। परन्तु अब समस्या यह है कि गुरु कहाँ खोजे। किसी के बहकावे में आकर बिना सोचे समझे हम गुरु के पास चले गए बाद में पता चला कि महाराज जी हमसे भी कहीं अधिक माया में फंसे हुए हैं, तो हमारा तो ये मानव जीवन ही बर्बाद होगया। हमारे वेदों ने गुरु की पहचान बताई है कि :-
"तद्विज्ञानार्थ स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्"
ये वेदमन्त्र बता रहा है कि गुरु शास्त्र वेदों का ज्ञाता हो साथ ही ब्रह्मनिष्ठ हो। ये दोनों शर्ते यदि कोई सन्तमहात्मा पूरी करता है तो तत्काल उसकी शरण में चले जाना चाहिए।
"तद्विज्ञानार्थ स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्"
ये वेदमन्त्र बता रहा है कि गुरु शास्त्र वेदों का ज्ञाता हो साथ ही ब्रह्मनिष्ठ हो। ये दोनों शर्ते यदि कोई सन्तमहात्मा पूरी करता है तो तत्काल उसकी शरण में चले जाना चाहिए।
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