चर्चा यह चल रही थी कि परमात्मा को कैसे प्राप्त करे, परमात्मा को कैसे जाने। यह बात भी बताई गयी कि तीन तत्व हैं जीव, माया, ब्रह्म अथवा ईश्वर। जीव और ईश्वर के बीच में त्रिगुणात्मक माया है जो हमे परमात्मा तक पहुँचने में सबसे बड़ी बाधा है। माया परमात्मा की शक्ति है अब इस माया को पराजित करके ही हम ईश्वर तक पहुँच सकते हैं जो कि असम्भव है क्योंकि पहले यह बताया जा चुका है आप भूले न होंगे कि जिस माया से श्रृष्टि के रचने वाले ब्रह्मा जी, श्रृष्टि का पालन पोषण करने वाले विष्णु जी, श्रृष्टि का महाप्रलय करने वाले शंकर भगवान जी, ये तीनो भी भगवान की इस माया से डरते हैं इसका मैने शास्त्रो से प्रमाण भी दिया था। अब ऐसे हालात में आप विचार करें कि हम जीव माया को कैसे जीत सकते हैं और कैसे परमात्मा तक पहुँच सकते हैं, लेकिन ऐसा हुआ है इतिहास गवाह है कि कितने ही जीवो ने माया पर विजय प्राप्त करके ईश्वर को जाना है ईश्वर को प्राप्त किया है।
ऐसी भगवान की माया जिससे ब्रह्मा शंकर भी भयभीत होते हैं, ऐसी माया पर कितने ही जीवो ने विजय प्राप्त की है और ईश्वर को पाया है। दरअसल माया को मायापति की कृपा से ही जीत सकते हैं इसके अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा साधन नहीं है जो अपने बल पर माया प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सके। तुलसीदास जी कहते हैं कि :-
सिव बिरन्च कहुँ मोहइ को है बपुरा आन।
अस जिय जान भजेहि मुनि मायापति भगवान।।
भगवान श्री कृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा है कि :-
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।।
प्रकृति के तीन गुणो वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन ही नहीं असम्भव है। किन्तु जो जीव मेरी ही शरण में आ जाते हैं अथवा पूर्णरूप से मेरे शरणागत हो जाते हैं ऐसे उन शरणागत जीवो को मैं अपनी कृपा से माया से पार कर देता हूँ।
ऐसी भगवान की माया जिससे ब्रह्मा शंकर भी भयभीत होते हैं, ऐसी माया पर कितने ही जीवो ने विजय प्राप्त की है और ईश्वर को पाया है। दरअसल माया को मायापति की कृपा से ही जीत सकते हैं इसके अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा साधन नहीं है जो अपने बल पर माया प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सके। तुलसीदास जी कहते हैं कि :-
सिव बिरन्च कहुँ मोहइ को है बपुरा आन।
अस जिय जान भजेहि मुनि मायापति भगवान।।
भगवान श्री कृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा है कि :-
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।।
प्रकृति के तीन गुणो वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन ही नहीं असम्भव है। किन्तु जो जीव मेरी ही शरण में आ जाते हैं अथवा पूर्णरूप से मेरे शरणागत हो जाते हैं ऐसे उन शरणागत जीवो को मैं अपनी कृपा से माया से पार कर देता हूँ।
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