द्रोपदी चीरहरण होने के बाद द्रोणाचार्य भीष्म के कमरे में आकर अपना दुःख प्रकट करने लगे की-
"मैं बहुत शर्मसार और दुखी हूँ की ये सब मेरी आँखों को देखना पड़ा, इस से बेहतर मैं मर जाता" वगैरह वगैरह,
जिसपर भीष्म का जवाब था की "मैं तो ये सोच रहा हूँ की जब अर्जुन हमला करेगा तो उस से कैसे निबटेंगे",
द्रोणाचार्य का सारा दुःख आश्चर्य में बदल गया, उन्होंने भीष्म से पूछा "तो क्या अर्जुन आज ही हमला कर देगा"
भीष्म का जवाब था "अगर कृष्ण उसके साथ ना होते तो वो बेशक आज ही हमला कर देता और हमारी सेना उसे यहीं महल में मार गिराती, लेकिन क्यूंकि कृष्ण उसके साथ है इसलिए वो पूरी तैयारी करके हमला करेगा, लेकिन करेगा जरूर".
ये वाकया महाभारत में कृष्ण के अपने और दूसरों के गुस्सों को काबू कर पाने की सबसे बड़ी गवाही है,
कृष्ण एक बहुत ही गुस्सैल लड़ाका थे, सभी को डर रहता था की इनसे पन्गा नहीं लेना चाहिए, कंस से लेकर शिशुपाल और जरासंध तक कृष्ण ने ना जाने कितने बड़े बड़े राजा ठिकाने लगा दिए थे।
कृष्ण के गुस्से को दिशान्तरण करने के तीन बड़े उदाहरण है:
1. पांडव गुस्से में होते हैं, द्रौपदी सबसे ज्यादा गुस्से में होती है, द्रौपदी कसम ले लेती है की वो अपने बाल अब दुशाशन के खून से ही धोएगी, वो बार बार युद्ध के लिए हुंकार भर रही होती है, सारे पाण्डंव चुपचाप सुन रहे होते हैं,
ऐसे में कृष्ण द्रौपदी को धमकाते हुए कहते है की तुम्हारे बालों के लिए वो हस्तिनापुर की लाखों महिलाओं का सिन्दूर नहीं उजड़ने देंगे, जब तक शांति की संभावना होगी तब तक शान्ति ही स्थापित करने की कोशिश की जायेगी।
द्रौपदी ये सुनकर चुप रह जाती है।
कृष्ण को पता था की इस युद्ध और दुशाशन के खून की कीमत द्रौपदी अपने पाँचों बेटों की जान से चुकाने वाली है।
2. दूसरा मौका था, जब कृष्ण पांच गाँव मांगने कौरवों के पास जाते हैं। दुर्योधन वहीँ उन्हें ग्वाला और पता नहीं क्या क्या कहने लग जाता है। कृष्ण के साथ आये हुए थे उनके भाई सात्यकि, जो महाभारत के सबसे बड़े योद्धाओं में माने जाते हैं, कृष्ण के कुछ कहने से पहले ही सात्यकि अपनी तलवार निकाल के भरी सभा के बीच दुर्योधन की छाती पर तान देते है। पूरी सभा सन्न रह जाती है कि ये क्या हो गया, युवराज की छाती की और सभा के बीचोबीच तलवार तनी हुई है। कृष्ण तभी सात्यकि का हाथ पकड़ लेते हैं, और युद्ध की चेतावनी दे डालते हैं। सात्यकि का हस्तिनापुर के महल में खड़े होकर दुर्योधन के विरुद्ध तलवार निकालना दुर्योधन को उसकी औकात बताना था, और उसे वहीँ पर नहीं मारना उसको अपनी ताकत और साहस दोनों बताना था।
दुर्योधन की सेना चाहती तो तलवार तानने के लिए सात्यकि को वहीँ मार सकती थी, लेकिन वो लोग कुछ नहीं करते।
3. तीसरा मौका था जब भीष्म फैसला कर लेते है की वो युधिष्ठिर को गिरफ्तार करके युद्ध ख़त्म कर देंगे,
भीष्म को रोक सके ऐसा कोई योद्धा नहीं था पांडवों की सेना में, भीष्म युद्धिष्ठिर को ललकारते हुए एलान कर देते है की या तो युद्धिष्ठिर आ के उन से लडे वरना वो कुछ ही दिनों में पांडवों की पूरी सेना को अकेला मार गिराएंगे, युद्धिष्ठिर को वहाँ भेज देते तो युद्ध उसी दिन ख़त्म हो जाना था, इसलिए कृष्ण युद्ध में हथियार ना उठाने की अपनी कसम को तोड़ देते है, और सुदर्शन चक्र लेकर भीष्म के सामने आ जाते है की भीष्म ने अगर एक भी पैदल सैनिक पर हथियार उठाया तो कृष्ण उसकी गर्दन उतार देंगे। भीष्म ये देखकर हथियार नीचे डालकर हाथ जोड़कर सामने खड़े हो जाते है, लेकिन कृष्ण उन्हें नहीं मारते, क्यूंकि उन्हें अपनी ताकत का डर बनाये रखना था, नाकि युद्ध में उतरना था।
ये तीनो ही मौके कृष्ण के गुस्से और गुस्से को अपनी फायदे के तौर पर इस्तेमाल करने के बेहतरीन उदाहरण हैं। कृष्ण दुश्मन को धमकाते हैं, लेकिन उसे मारते नहीं है, वो उसे मारते तभी है जब कोई और चारा ही ना बचा हो, क्यूंकि कृष्ण को परिणाम की समझ थी। उन्हें मालूम था की एक एक पैदल सैनिक का उसके घर पर कोई इंतज़ार कर रहा है। वो ना तो द्रौपदी के गुस्से को सैनिकों की जान लेने लायक समझते है, ना ही भीष्म और सात्यकि के शौर्य को। इंसान को क्रोध करना तो चाहिए पर उस पर कृष्ण जैसा नियंत्रण भी बनाये रखना चाहिए क्योंकि क्रोध आपके लिए विजय पाने के लिये विकल्प तलाशने में मदद करता है पर नियंत्रित न होने पर हर रास्ते को बन्द भी कर देता हैं।
जय श्री कृष्ण
जय श्री राधे
"मैं बहुत शर्मसार और दुखी हूँ की ये सब मेरी आँखों को देखना पड़ा, इस से बेहतर मैं मर जाता" वगैरह वगैरह,
जिसपर भीष्म का जवाब था की "मैं तो ये सोच रहा हूँ की जब अर्जुन हमला करेगा तो उस से कैसे निबटेंगे",
द्रोणाचार्य का सारा दुःख आश्चर्य में बदल गया, उन्होंने भीष्म से पूछा "तो क्या अर्जुन आज ही हमला कर देगा"
भीष्म का जवाब था "अगर कृष्ण उसके साथ ना होते तो वो बेशक आज ही हमला कर देता और हमारी सेना उसे यहीं महल में मार गिराती, लेकिन क्यूंकि कृष्ण उसके साथ है इसलिए वो पूरी तैयारी करके हमला करेगा, लेकिन करेगा जरूर".
ये वाकया महाभारत में कृष्ण के अपने और दूसरों के गुस्सों को काबू कर पाने की सबसे बड़ी गवाही है,
कृष्ण एक बहुत ही गुस्सैल लड़ाका थे, सभी को डर रहता था की इनसे पन्गा नहीं लेना चाहिए, कंस से लेकर शिशुपाल और जरासंध तक कृष्ण ने ना जाने कितने बड़े बड़े राजा ठिकाने लगा दिए थे।
कृष्ण के गुस्से को दिशान्तरण करने के तीन बड़े उदाहरण है:
1. पांडव गुस्से में होते हैं, द्रौपदी सबसे ज्यादा गुस्से में होती है, द्रौपदी कसम ले लेती है की वो अपने बाल अब दुशाशन के खून से ही धोएगी, वो बार बार युद्ध के लिए हुंकार भर रही होती है, सारे पाण्डंव चुपचाप सुन रहे होते हैं,
ऐसे में कृष्ण द्रौपदी को धमकाते हुए कहते है की तुम्हारे बालों के लिए वो हस्तिनापुर की लाखों महिलाओं का सिन्दूर नहीं उजड़ने देंगे, जब तक शांति की संभावना होगी तब तक शान्ति ही स्थापित करने की कोशिश की जायेगी।
द्रौपदी ये सुनकर चुप रह जाती है।
कृष्ण को पता था की इस युद्ध और दुशाशन के खून की कीमत द्रौपदी अपने पाँचों बेटों की जान से चुकाने वाली है।
2. दूसरा मौका था, जब कृष्ण पांच गाँव मांगने कौरवों के पास जाते हैं। दुर्योधन वहीँ उन्हें ग्वाला और पता नहीं क्या क्या कहने लग जाता है। कृष्ण के साथ आये हुए थे उनके भाई सात्यकि, जो महाभारत के सबसे बड़े योद्धाओं में माने जाते हैं, कृष्ण के कुछ कहने से पहले ही सात्यकि अपनी तलवार निकाल के भरी सभा के बीच दुर्योधन की छाती पर तान देते है। पूरी सभा सन्न रह जाती है कि ये क्या हो गया, युवराज की छाती की और सभा के बीचोबीच तलवार तनी हुई है। कृष्ण तभी सात्यकि का हाथ पकड़ लेते हैं, और युद्ध की चेतावनी दे डालते हैं। सात्यकि का हस्तिनापुर के महल में खड़े होकर दुर्योधन के विरुद्ध तलवार निकालना दुर्योधन को उसकी औकात बताना था, और उसे वहीँ पर नहीं मारना उसको अपनी ताकत और साहस दोनों बताना था।
दुर्योधन की सेना चाहती तो तलवार तानने के लिए सात्यकि को वहीँ मार सकती थी, लेकिन वो लोग कुछ नहीं करते।
3. तीसरा मौका था जब भीष्म फैसला कर लेते है की वो युधिष्ठिर को गिरफ्तार करके युद्ध ख़त्म कर देंगे,
भीष्म को रोक सके ऐसा कोई योद्धा नहीं था पांडवों की सेना में, भीष्म युद्धिष्ठिर को ललकारते हुए एलान कर देते है की या तो युद्धिष्ठिर आ के उन से लडे वरना वो कुछ ही दिनों में पांडवों की पूरी सेना को अकेला मार गिराएंगे, युद्धिष्ठिर को वहाँ भेज देते तो युद्ध उसी दिन ख़त्म हो जाना था, इसलिए कृष्ण युद्ध में हथियार ना उठाने की अपनी कसम को तोड़ देते है, और सुदर्शन चक्र लेकर भीष्म के सामने आ जाते है की भीष्म ने अगर एक भी पैदल सैनिक पर हथियार उठाया तो कृष्ण उसकी गर्दन उतार देंगे। भीष्म ये देखकर हथियार नीचे डालकर हाथ जोड़कर सामने खड़े हो जाते है, लेकिन कृष्ण उन्हें नहीं मारते, क्यूंकि उन्हें अपनी ताकत का डर बनाये रखना था, नाकि युद्ध में उतरना था।
ये तीनो ही मौके कृष्ण के गुस्से और गुस्से को अपनी फायदे के तौर पर इस्तेमाल करने के बेहतरीन उदाहरण हैं। कृष्ण दुश्मन को धमकाते हैं, लेकिन उसे मारते नहीं है, वो उसे मारते तभी है जब कोई और चारा ही ना बचा हो, क्यूंकि कृष्ण को परिणाम की समझ थी। उन्हें मालूम था की एक एक पैदल सैनिक का उसके घर पर कोई इंतज़ार कर रहा है। वो ना तो द्रौपदी के गुस्से को सैनिकों की जान लेने लायक समझते है, ना ही भीष्म और सात्यकि के शौर्य को। इंसान को क्रोध करना तो चाहिए पर उस पर कृष्ण जैसा नियंत्रण भी बनाये रखना चाहिए क्योंकि क्रोध आपके लिए विजय पाने के लिये विकल्प तलाशने में मदद करता है पर नियंत्रित न होने पर हर रास्ते को बन्द भी कर देता हैं।
जय श्री कृष्ण
जय श्री राधे
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